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________________ कषायप्राभृत योग, ९. चतुःस्थान, १०. व्यञ्जन, ११. सम्यक्त्व, १२. देशविरति, १३. संयम, १४. चारित्रमोहनीय की उपशामना, १५. चारित्रमोहनीय की क्षपणा। इस स्थान पर जयधवलाकार ने यह भी निर्देश किया है कि इसी तरह अन्य प्रकारों से भी पन्द्रह अर्थाधिकारों का प्ररूपण कर लेना चाहिए।' इससे प्रतीत होता है कि कषायप्राभृत के अर्थाधिकारों की गणना में एकरूपता नहीं रही है। कषायप्राभृत की गाथासंख्या : वैसे तो कषायप्राभृत में २३३ गाथाएँ मानी जाती हैं किन्तु वस्तुतः इस ग्रन्थ में १८० गाथाएं ही हैं । शेष ५३ गाथाएँ कषायप्राभृतकार गुणधराचार्यकृत न होकर सम्भवतः आचार्य नागहस्तिकृत हैं जो व्याख्या के रूप में बाद में जोड़ी गई हैं। यह बात इन गाथाओं को तथा जयधवला टीका को देखने से स्पष्ट मालूम होती है। कषायप्राभूत के मुद्रित संस्करणों में भी सम्पादकों ने इनके पृथक्करण का पूरा ध्यान रखा है। आचार्य नागहस्ती कषायप्राभृत-चूर्णिकार आचार्य यतिवृषभ के गुरु हैं। यतिवृषभाचार्य ने यद्यपि इन गाथाओं पर भी चूर्णिसूत्र लिखे हैं तथापि उनके कर्तृत्व के विषय में किसी प्रकार का उल्लेख नहीं किया है। सम्भवतः इस प्रकार का उल्लेख उन्होंने आवश्यक न समझा हो क्योंकि कषायप्राभूतकार के नाम का भी उन्होंने अपने चूणिसूत्रों में कोई निर्देश नहीं किया है। यह भी सम्भव है कि एतद्विषयक विशेष जानकारी प्राप्त न हुई हो एवं परम्परा से चली आने वाली गाथाओं पर अर्थ के स्पष्टीकरण की दृष्टि से चूर्णिसूत्र लिख दिये हों। जो कुछ भी हो, इतना निश्चित है कि कषायप्राभूत की २३३ गाथाओं में से १८० गाथाएँ तो स्वयं ग्रन्थकार की बनाई हुई हैं और शेष ५३ गाथाएँ परकृत हैं। जयधवलाकार ने जहाँ कहीं कषायप्राभूत की गाथाओं का निर्देश किया है, सर्वत्र १८० की ही संख्या दी है। यद्यपि उन्होंने एक स्थान पर २३३ गाथाओं का उल्लेख किया है और यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि ये सब गाथाएँ यानी २३३ गाथाएँ गुणधराचार्यकृत हैं किन्तु उनका वह समाधान सन्तोषकारक नहीं है । विषय-परिचय : कषायप्राभूतान्तर्गत २३३ गाथाओं में से प्रारम्भ की १२ गाथाएँ प्रस्तावनारूप हैं । कषायप्राभृत की उत्पत्ति के विषय में प्रथम गाथा में कहा गया है कि १. वही, पृ० १९३. . २. वही, पृ० ९६, १८३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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