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________________ कषायप्रामृत कषायप्राभूत के प्रणेता : कषायप्राभूत के रचयिता आचार्य गुणधर हैं जिन्होंने गाथासूत्रों में प्रस्तुत ग्रन्थ को निबद्ध किया। जयधवलाकार ने अपनी टीका के प्रारम्भ में स्पष्ट लिखा है : जेणिह कसायपाहुडमणेयणयमुज्जलं अणंतत्थं । गाहाहि विवरियं तं गुणहरभडारयं वंदे ॥ ६ ॥ अर्थात् जिन्होंने इस क्षेत्र में अनेक नामों से युक्त, उज्जवल एवं अनन्त पदार्थों से व्याप्त कषायप्राभृत का गाथाओं द्वारा व्याख्यान किया उन गुणधर भट्टारक को मैं नमस्कार करता हूँ। आचार्य गुणधर ने इस कषायप्राभूत ग्रन्थ की रचना क्यों की? इसका समाधान करते हुए जयधवला टीका में आचार्य वीरसेन ने बताया है कि ज्ञानप्रवाद ( पाँचवें ) पूर्व की निर्दोष दसवीं वस्तु के तीसरे कषायप्राभृतरूपी समुद्र के जलसमुदाय से प्रक्षालित मतिज्ञानरूपी लोचनसमूह से जिन्होंने तीनों लोकों को प्रत्यक्ष कर लिया है तथा जो त्रिभुवन के परिपालक हैं उन गुणधर भट्टारक ने तीर्थ के व्युच्छेद के भय से कषायप्राभृत के अर्थ से युक्त गाथाओं का उपदेश दिया। . कषायप्राभृतकार आचार्य गुणधर के समय का उल्लेख करते हुए जयधवलाकार ने लिखा है कि भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् ६८३ वर्ष व्यतीत होने पर अंगों और पूर्वो का एकदेश आचार्य-परम्परा से गुणधराचार्य को प्राप्त हुआ। उन्होंने प्रवचन-वात्सल्य के वशीभूत हो ग्रन्थ-विच्छेद के भय से १६००० पदप्रमाण पेज्जदोसपाहुड का १८० गाथाओं में उपसंहार किया। महाकर्मप्रकृतिप्राभृत अर्थात् षट्खण्डागम के प्रणेता आचार्य पुष्पदन्त व भूतबलि के समय का उल्लेख भी धवला में इसी रूप में है। इन उल्लेखों को देखने से ऐसी प्रतीति होती है कि कषायप्राभृतकार और महाकर्मप्रकृतिप्राभृतकार सम्भवतः समकालीन रहे होंगे । धवला व जयधवला के अध्ययन से ऐसी कोई प्रतीति नहीं होती कि अमुक प्राभृत की रचना अमुक प्राभूत से पहले की है अथवा बाद की। १. कसायपाहुड, भा० १, पृ० ४-५. २. वही, पृ० ८५-८७. ३. षट्खण्डागम, पुस्तक १, पृ०६६-७१; पुस्तक ९, पृ० १३०-१३३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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