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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'कायोत्सर्ग' शब्द की व्याख्या करने के लिए नियुक्तिकार निम्नलिखित ग्यारह द्वारों का आधार लेते हैं : १. निक्षेप, २. एकार्थकशब्द, ३. विधानमार्गणा, ४. कालप्रमाण, ५. भेदपरिमाण, ६. अशठ, ७. शठ, ८. विधि, ९. दोष, १०. अधिकारी और ११. फल ।'
'कायोत्सर्ग' में दो पद हैं : काय और उत्सर्ग। काय का निक्षेप बारह प्रकार का है और उत्सर्ग का छ: प्रकार का। कायनिक्षेप के बारह प्रकार ये हैं : १. नाम, २. स्थापना, ३. शरीर, ४. गति, ५. निकाय, ६. अस्तिकाय, ७. द्रव्य, ८. मातृका, ९. संग्रह, १०. पर्याय, ११. भार और १२. भाव । इनमें से प्रत्येक के अनेक भेद-प्रभेद होते हैं ।
काय के एकार्थक शब्द ये हैं : काय, शरीर, देह, बोन्दि, चय, उपचय, संघात, उच्छय, समुच्छ्रय, कलेवर, भस्त्रा. तनु, प्राणु । ३ ___ उत्सर्ग का निक्षेप छ: प्रकार का है : नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । उत्सर्ग के एकार्थवाची शब्द ये हैं : उत्सर्ग, व्युत्सर्जन, उज्झना, अवकिरण, छर्दन, विवेक, वर्जन, त्यजन, उन्मोचना, परिशाठता, शातना। ___ कायोत्सर्ग के विधान अर्थात् प्रकार दो हैं : चेष्टाकायोत्सर्ग और अभिभव कायोत्सर्ग। भिक्षाचर्या आदि में होने वाला चेष्टाकायोत्सर्ग है; उपसर्ग आदि में होने वाला अभिभवकायोत्सर्ग है ।६
अभिभवकायोत्सर्ग की कालमर्यादा अधिक से अधिक संवत्सर-एक वर्ष है और कम से कम अन्तर्मुहूर्त है।
कायोत्सर्ग के भेदपरिमाण की चर्चा करते हुए नियुक्तिकार नौ भेदों की गणना करते हैं : १. उच्छितोच्छित, २. उच्छित ३. उच्छ्रितनिषण्ण, ४. निषण्णोच्छित, ५. निषण्ण, ६. निषण्णनिषण्ण, ७. निविण्णोच्छित ८. निविण्ण, ९. निविण्णनिविण्ण ।' उच्छित, का अर्थ है ऊर्ध्वस्थ अर्थात् खड़ा हुआ, निषण्ण का अर्थ है उपविष्ट अर्थात् बैठा हुआ और निविण्ण का अर्थ है सुप्त अर्थात् सोया हुआ।
भेदपरिमाण की चर्चा करते-करते आचार्य कायोत्सर्ग के गुणों की चर्चा शुरू कर देते हैं। कायोत्सर्ग से देह और मति की जड़ता की शुद्धि होती है, सुख-दुःख सहन करने की क्षमता आती है, अनुप्रेक्षा अर्थात् अनित्यत्वादि का चिन्तन होता है तथा एकाग्रतापूर्वक शुभध्यान का अभ्यास होता है। शुभध्यान
१. गा. १४२१. २. गा. १४२४-५. ३. गा. १४४१. ४. गा. १४४२.. ५. गा. १४४६. ६. गा. १४४७. ७. गा. १४५३. ८. गा. १४५४-५.
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