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________________ ४२४ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास देहरि की प्रतिष्ठा करवाई थी : संवत् १४८३ वर्षे प्रथम वैशाख शुद १३ गुरौ श्रीअंचलगच्छे श्रीमेरुतुगसूरीणां पट्टोधरेण श्रीजयकीर्तिसूरीश्वर सुगुरूपदेशेन 'श्रीजिराउला पार्श्वनाथस्य चैत्ये देहरि (३) कारापिता"।' प्रस्तुत दीपिका के प्रणेता माणिक्यशेखरसूरि भी अंचलगच्छीय मेरुतुगरि के हो शिष्य हैं । ऐसी स्थिति में यदि जयकीर्तिसूरि और माणिक्यशेखरसूरि गुरुभ्राता के रूप में माने जाएं तो दीपिकाकार माणिक्यशेखरसरि सहज ही विक्रम की १५ वीं शताब्दी के सिद्ध होते हैं। दूसरी बात यह है कि प्रस्तुत ग्रन्थ की वि० सं० १५५० के पूर्व लिखी गई कोई प्रति भी उपलब्ध नहीं है। जिसके आधार पर उन्हें अधिक प्राचीन सिद्ध किया जा सके । आचारांगदीपिका : शीलांकाचार्यकृत आचारांगविवरण के आधार पर विरचित प्रस्तुत दीपिका' चंद्रगच्छीय महेश्वरसूरि के शिष्य अजितदेवसूरि की कृति है । इसका रचनासमय वि० सं० १६२९ के आसपास है।४ टीका सरल, संक्षिप्त एवं सुबोध है । इसका उत्तराधं अभी तक प्रकाश में नहीं आया है। प्रारम्भ में आचार्य ने वर्धमान जिनेश्वर का स्मरण किया है एवं आचारांग सूत्र की बृहद्वत्ति (शीलांककृत) की दुर्विगाहता बताते हुए अल्प बुद्धिवालों के लिए प्रस्तुत दीपिका लिखने का संकल्प किया है : वर्द्धमानजिनो जीयाद्, भव्यानां वृद्धिदोऽनिशम् । बुद्धिवृद्धिकरोऽस्माकं, भूयात् त्रैलोक्यपावनः ।। १ ॥ श्रीआचाराङ्गसूत्रस्य, बृहद्वृत्तिः सविस्तरा । दुर्विगाहाऽल्पबुद्धीनां, क्रियते तेन दीपिका ॥२॥ गच्छाचारवृत्ति : ___ यह वृत्ति तपागच्छीय आनन्दविमलसूरि के शिष्य विजयविमलगणि की कृति है। इसका रचना काल वि० सं० १६३४ एवं ग्रन्थमान २८५० श्लोकप्रमाण है । वृत्ति विस्तृत है एवं प्राकृत कथानकों से युक्त है। वानरर्षिकृत गच्छाचारटीका का आधार यही वृत्ति है। प्रारम्भ में वृत्तिकार ने भगवान् महावीर तथा स्वगुरु को प्रणाम करके गच्छाचार-प्रकीर्णक की वृत्ति लिखने का संकल्प किया है । अन्त १. वही, प्रस्तावना. २. वही. ३. प्रथम श्रुतस्कन्ध-मणिविजयजीगणिवर ग्रंथमाला, लींच, वि० सं० २००५. ४. प्रस्तावना, पृ० ४. ५. दयाविमलजी जैन ग्रंथमाला, अहमदाबाद, १९२४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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