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________________ मलधारी हेमचन्द्रकृत टीकाएँ ४१३ श्रुतभक्तिजनितौत्सुक्यभावतोऽविचारितस्वशक्तित्वादल्पधियामनुग्रहार्थ - त्वाच्च कर्तुमारभ्यते। 'से किं तं तिनामे...' ( सू० १२३) की वृत्ति में रस का विवेचन करते हुए वृत्तिकार ने भिषक्शास्त्र के 'श्लेष्माणमरुचि पित्तं तृषं कुष्ठं विषं ज्वरम्' आदि अनेक श्लोक उद्धृत किये है। इसी प्रकार सप्तस्वर की व्याख्या में तथा अन्यत्र भी अनेक श्लोक उद्धृत किये गये हैं। इस वृत्ति के अन्त में भी वही प्रशस्ति है जो विशेषावश्यकभाष्य की वृत्ति के अन्त में है। इसमें वृत्ति-रचना का समय नहीं दिया गया है। इसका ग्रन्थमान ५९०० श्लोक प्रमाण है। विशेषावश्यकभाष्य-बृहद्वृत्ति : . प्रस्तुत वृत्ति' को शिष्यहितावृत्तिभी कहते हैं । यह मलधारी हेमचन्द्रसूरि की बृहत्तम कृति है। इसमें आचार्य ने विशेषावश्यकभाष्य में प्रतिपादित प्रत्येक विषय को अति सरल एवं सुबोध शैली में समझाया है । दार्शनिक चर्चा की प्रधानता होते हुए भी शैली में क्लिष्टता नहीं आने पाई है, यह इस टीका को एक बहुत बड़ी विशेषता है । शंका-समाधान और प्रश्नोत्तर की पद्धति का प्राधान्य होने के कारण पाठक को अरुचि का सामना नहीं करना पड़ता। यत्र-तत्र संस्कृत कथानकों के उद्धरण से विषय-विवेचन और भी सरल हो गया है। इस टीका के कारण विशेषावश्यकभाष्य के पठन-पाठन में अत्यधिक सरलता हो गयी है, इसमें कोई संदेह नहीं । इस टीका से भाष्यकार और टीकाकार दोनों के यश में असाधारण वृद्धि हुई है। टीका के प्रारम्भ में आचार्य ने वर्धमान जिनेश्वर, सुधर्मादिप्रमुख सूरिसंघ, स्वगुरु, जिनभद्र और श्रुतदेवता की सविनयः वंदना की है : श्रीसिद्धार्थनरेन्द्रविश्रुतकुलव्योमप्रवृत्तोदयः, सद्बोधांशुनिरस्तदुस्तरमहामोहान्धकारस्थितिः । दप्ताशेषकुवादिकौशिककुलप्रीतिप्रणोदक्षमो, जीयादस्खलितप्रतापतरणिः श्रीवर्धमानो जिनः ॥ १ ॥ येन क्रमेण कृपया श्रुतधर्म एष, आनीय मादृशजनेऽपि हि संप्रणोतः । १. पाटन-संस्करण, पृ० १००. २. पृ० ११७-६. ३. (अ) यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, बनारस. वीर सं० २४२७-२४४१. (आ)गुजराती भाषान्तर-चुनीलाल हुकमचन्द. आगमोदय समिति,. बम्बई, सन् १९२४-७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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