SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकादश प्रकरण मलधारी हेमचन्द्रकृत टीकाएँ मलधारी हेमचन्द्रसूरि की परम्परा में होने वाले मलधारी राजशेखर ने अपनी प्राकृतद्वयाश्रय की वृत्ति को प्रशस्ति में लिखा है कि मलधारी हेमचन्द्र का गृहस्थाश्रम का नाम प्रद्युम्न था। वे राजमन्त्री थे और अपनी चार स्त्रियों को छोड़कर मलधारी अभयदेवरि के पास दीक्षित हुए थे। इन दोनों आचार्यों के प्रभावशाली जीवन-चरित्र का वर्णन मलघारी हेमचन्द्र के ही शिष्य श्रीचन्द्रसूरि ने अपने मुनिसुव्रत-चरित की प्रशस्ति में किया है। वह अति रोचक एवं ऐति. हासिक तथ्यों से युक्त है। मलधारी हेमचन्द्र का परिचय देते हुए श्रीचन्द्रसूरि 'अपने तेजस्वी स्वभाव से उत्तम पुरुषों के हृदय को आनन्दित करने वाले कौस्तुभमणि के समान श्री हेमचन्द्रसूरि आचार्य अभयदेव के बाद हुए। वे अपने युग में प्रवचन में पारगामी और वचनशक्तिसम्पन्न थे। भगवती जैसा शास्त्र तो उन्हें अपने नाम की भाँति कण्ठस्थ था। उन्होंने मूलग्रंथ, विशेषावश्यक, व्याकरण और प्रमाणशास्त्र आदि अन्य विषयों के अर्ध लक्ष ( ? ) ग्रंथ पढ़े थे । जो राजा तथा अमात्य आदि सब में जिनशासन को प्रभावना करने में परायण और परम कारुणिक थे । मेघ के समान गम्भीर ध्वनि से जिस समय वे उपदेश देते उस समय जिनभवन के बाहर खड़े रहकर भी लोग उनके उपदेशरस का पान करते थे। व्याख्यानलब्धिसम्पन्न होने के कारण उनके शास्त्रव्याख्यान को सुनकर जडबुद्धि वाले लोग भी सहज ही बोध प्राप्त कर लेते । सिद्धव्याख्यानिक ( सिद्धर्षि ) की उपमितिभवप्रपंचकथा वैराग्य उत्पन्न करने वाली होते हुए भी समझने में अत्यन्त कठिन थी इसलिए सभा में उसका व्याख्यान लम्बे समय से कोई नहीं करता था। जिस समय आचार्य हेमचन्द्र उसका व्याख्यान करते, उस समय लोगों को उसे सुनने में खूब आनन्द आता। श्रोताओं की बारम्बार की प्रार्थना के कारण उन्हें लगातार तीन वर्ष तक उस कथा का व्याख्यान करना पड़ा। इसके बाद उस कथा का प्रचार खूब बढ़ गया। आचार्य हेमचन्द्र ने निम्नलिखित ग्रंथ बनाये : सर्वप्रथम उपदेशमाला मूल और भवभावना मूल की १. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० २४५. २. मुनिसुव्रतचरित को प्रशस्ति, का० १३२-१८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy