SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०६ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इमां च पिंडनियुक्तिमतिगम्भीरां विवृण्वता कुशलम् । यदवापि मलयगिरिणा सिद्धि तेनाश्नुतां लोकः ॥ ३ ॥ अर्हन्तः शरणं सिद्धाः, शरणं मम साधवः । शरणं जिननिर्दिष्टो, धर्मः शरणमुत्तमः ॥ ४॥ आवश्यक विवरण : प्रस्तुत विवरण आवश्यक नियुक्ति पर है। यह अपूर्ण ही प्राप्त है । प्रारम्भ में विवरणकार आचार्य मलयगिरि ने भगवान् पार्श्वनाथ, प्रभु महावीर तथा अपने गुरुदेव का स्मरण किया है और बताया है कि यद्यपि आवश्यक नियुक्ति पर अनेक विवरण ग्रन्थ विद्यमान हैं किन्तु उनके कठिन होने के कारण मन्द बुद्धि के लोगों के लिए पुनः उसका विवरण प्रारम्भ किया जाता है : पार्श्वनाथस्य पादपद्मनखांशवः । ॥ १ ॥ पान्तु वः अशेषविघ्नसंघाततमोभेदैकहेतवः जयति जगदेकदीपः प्रकटितनिःशेषभावसद्भावः । कुमतपतंगविनाशी श्रीवीर जिनेश्वरो भगवान् ॥ २ ॥ नत्वा गुरुपदकमलं प्रभावतस्तस्य मन्दशक्तिरपि । आवश्यक नियुक्ति विवृणोमि यथाऽऽगमं स्पष्टम् ॥ ३ ॥ यद्यपि च विवृतयोऽस्याः सन्ति विचित्रास्तथापि विषमास्ताः । सम्प्रतिजनो हि जडधीभूयानिति विवृतिसंरम्भः ॥ ४ ॥ इसके बाद मंगल का नामादि भेदपूर्वक विस्तृत व्याख्यान किया गया है एवं उसकी उपयोगिता पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है । इस प्रसंग पर तथा आगे भी यत्र-तत्र विशेषावश्यकभाष्य की गाथाएँ उद्धृत की गयी हैं । नियुक्ति की गाथाओं के पदों का अर्थ करते हुए तत्प्रतिपादित प्रत्येक विषय का आवश्यक प्रमाणों के साथ सरल भाषा एवं सुबोध शैली में विवेचन किया गया है । इस विवेचन की एक विशेषता यह है कि आचार्य ने विशेषावश्यकभाष्य की गाथाओं का स्वतन्त्र व्याख्यान न करते हुए भी उसका भावार्थं तो अपनी टीका में दे ही दिया है । विवरण में जितनी ही गाथाएँ हैं, प्रायः विवरण के वक्तव्य की पुष्टि के लिए हैं । विवरणकार ने भाष्य की गाथाओं के व्याख्या के रूप में अपने विवरण का विस्तार न करते हुए अपने विवरण के समर्थन के रूप में 'उक्तं च', 'तथा चाह भाष्यकृत्', 'एतदेव व्याख्यानं भाष्यकारोऽप्याह' इत्यादि शब्दों के साथ १. आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९२८ - १९३२ देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, सूरत, सन् १९३६. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy