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________________ मलयगिरिविहित वृत्तियां ४०५ नियुक्ति पर है। इसमें भाष्य की ४६ गाथाओं का भी समावेश है। इनके भाष्यगाथाएँ होने का निर्देश स्वयं वृत्तिकार ने किया है। प्रारम्भ में आचार्य ने वर्धमान जिनेश्वर का स्मरण करके अपने गुरुदेव को प्रणाम किया है तथा पिण्डनियुक्ति की संक्षिप्त एवं स्पष्ट व्याख्या लिखने की प्रतिज्ञा की है : जयति जिनवर्धमानः परहितनिरतो विधूतकमरजाः। मुक्तिपथचरणपोषकनिरवद्याहारविधिदेशी ॥१॥ नत्वा गुरुपदकमलं गुरूपदेशेन पिण्डनियुक्तिम् । विवृणोमि समासेन स्पष्टं शिष्यावबोधाय ॥ २॥ पिण्डनियुक्ति किस सूत्र से सम्बद्ध है ? इस प्रश्न का उत्तर टीकाकार ने इस प्रकार दिया है : इह दशाध्ययनपरिमाणश्चूलिकायुगलभूषितो दशवैकालिको नाम श्रुतस्कन्धः, तत्र च पंचममध्ययनं पिण्डैषणानामकं, दशवकालिकस्य च नियुक्तिश्चतुर्दशपूर्वविदा भद्रबाहुस्वामिना कृता, तत्र पिण्डैषणाभिधपंचमाध्ययननियुक्तिरतिप्रभूतग्रन्थत्वात् पृथक् शास्त्रान्तरमिव व्यवस्थापिता, तस्याश्च पिण्डनियुक्तिरिति नाम कृतं, पिण्डषणानियुक्तिः पिंडनियुक्तिरिति मध्यमपदलोपिसमासाश्रयणाद् ।' ____ दशवकालिक सूत्र के पिण्डषणा नामक पंचम अध्ययन की ( चतुर्दश-पूर्वविद् भद्रबाहुस्वामिकृत ) नियुक्ति का नाम ही पिण्डनियुक्ति है। इसका परिमाण बृहद् होने के कारण इसे पृथक् ग्रन्थ के रूप में स्वीकृत किया गया । चूँकि यह नियुक्तिग्रंथ दशवकालिकनियुक्ति से प्रतिबद्ध है अतः इसके आदि में नमस्कारमंगल भी नहीं किया गया । प्रस्तुत वृत्ति में आचार्य मलयगिरि ने व्याख्यारूप अनेक कथानक दिये हैं जो संस्कृत में हैं । वृत्ति का ग्रन्थमान ६७०० श्लोक-प्रमाण है । वृत्ति समाप्त करते हुए आचार्य ने पिण्डनियुक्तिकार द्वादशांगविद् भद्रबाहु एवं पिण्डनियुक्ति-विषमपदवृत्तिकार ( आचार्य हरिभद्र व वीरगणि) को नमस्कार किया है तथा लोककल्याण की भावना के साथ अरिहंत, सिद्ध, साधु एवं जिनोपदिष्ट धर्म का शरण ग्रहण किया है : येनैषा पिण्डनियुक्तियुक्तिरम्या विनिर्मिता । द्वादशांगविदे तस्मै, नमः श्रीभद्रबाहवे ॥१॥ व्याख्याता यैरेषा विषमपदार्थाऽपि सुललितवचोभिः ।। अनुपकृतपरोपकृतो विवृतिकृतस्तान्नमस्कुर्वे ।। २।। १. पृ० १. २. पृ० १७८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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