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________________ ३९६ जैन साहित्य का बृहद इतिहास समएणं पालित्तएण ईणमो रइयागाहाहिं परिवाडी .......' इस वाक्य से यह ध्वनि निकलती है कि यह टीका पादलिप्तसूरि ने लिखी है। यदि ऐसा है तो मलयगिरिद्वारा उद्धृत 'एए उ सुसमसुसमादयो अद्धाविसेसा" वाक्य इस टीका में क्यों नहीं मिलता ? इस प्रश्न का एक ही उत्तर हो सकता है और वह यह कि यदि उपलब्ध टोका पादलिप्तसूरि की ही है तो यह तथा इस प्रकार के और भी कुछ वाक्य इस टीका से धीरे-धीरे लुप्त हो गये हैं। प्रस्तुत वृत्ति का उपसंहार करते हुए वृत्तिकार मलय गिरि कहते हैं कि यह कालज्ञानसमास शिष्यों के विबोधनार्थ दिनकरप्रज्ञप्ति (सूर्यप्रज्ञप्ति) के आधार से पूर्वाचार्य ने तैयार किया है । परम्परा से सर्वविमूलक होने के कारण प्रस्तुत ग्रन्थ जिसका कि नाम ज्योतिष्करण्डक हैं विद्वानों के लिए अवश्य ही उपादेय हे । अन्त में निम्न श्लोक देते हुए टीका समाप्त करते हैं : यद्गदितमल्पमतिना जिनवचनविरुद्धमत्र टोकायाम् । विद्वद्भिस्तत्त्वज्ञैः प्रसादमाधाय तच्छोध्यम् ॥१॥ ज्योतिष्करण्डकमिदं गम्भीरार्थं विवृण्वता कुशलम् । यदवापि मलयगिरिणा सिद्धिं तेनाश्नुतां लोकः ॥२॥ अर्थात् प्रस्तुत टीका में मुझ अल्पबुद्धि द्वारा यदि कोई बात जिनवचन से विरुद्ध कही गई हो तो विद्वान तत्त्वज्ञ कृपा कर उसे ठीक कर लें । इस गम्भीरार्थ ज्योतिष्करण्डक के विवरण से मलयगिरि को जो पुण्य प्राप्त हुआ है उससे लोक का कल्याण हो । जीवाभिगमविवरण : तृतीय उपांग जीवाभिगम की प्रस्तुत टीका में आचार्य ने मूल सूत्र के प्रत्येक पद का व्याख्यान किया है। यत्र-तत्र अनेक प्राचीन ग्रन्थों के नाम तथा उद्धरण भी दिये हैं। इसी प्रकार कुछ ग्रन्थ कारों के नाम का भी उल्लेख किया है । प्रारम्भ में निम्न मंगलश्लोक हैं : प्रणमत पदनखतेजःप्रतिहतनिःशेषनम्रजनतिमिरम् । वीरं परतीथियशोद्विरदघटाध्वंसकेसरिणम् ॥ १ ॥ प्रणिपत्य गुरुन् जीवाजोवाभिगमस्य विवृतिमहमनघाम् । विदधे गुरूपदेशात्प्रबोधमाधातुमल्पधियाम् ॥ २॥ मंगल का प्रयोजन आदि बताने के बाद सूत्रों को व्याख्या प्रारम्भ की है। १. प्राकृतवृत्ति, पृ० ९३. ( हस्तलिखित ) २. वही पृ० २६६. ३. देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, बम्बई, सन् १९१९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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