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________________ अभयदेव विहित वृत्तियां ३८१ कुछ शब्दों का अर्थतः और कुछ का पर्यायतः ज्ञान न होने से वृत्ति में त्रुटियाँ रहना स्वाभाविक है । जिनवाणी में निष्णात आदरणीय विद्वज्जन उन त्रुटियों का संशोधन कर लें क्योंकि जिनमत की उपेक्षा करना उचित नहीं । प्रश्नव्याकरणवृत्ति : अभयदेवसूरिकृत प्रस्तुत शब्दार्थप्रधान वृत्ति' का ग्रंथमान ४६३० श्लोक -- प्रमाण है । इसे द्रोणाचार्य ने शुद्ध किया था । वृत्ति के प्रारंभ में व्याख्येय ग्रंथ: की दुरूहता का निर्देश करते हुए आचार्य कहते हैं : अज्ञा वयं शास्त्रमिदं गभीरं प्रायोऽस्य कूटानि च पुस्तकानि । सूत्रं व्यवस्थाप्यमतो विमृश्य, व्याख्यानकल्पादित एव नैव ॥ प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम प्रश्नव्याकरण अथवा प्रश्नव्याकरणदशा है । प्रश्न-व्याकरण का अर्थ बताते हुए वृत्तिकार कहते हैं कि जिसमें प्रश्न अर्थात् अंगुष्ठादि प्रश्नविद्याओं का व्याकरण अर्थात् अभिधान किया गया है वह प्रश्नव्याकरण है । प्रश्नव्याकरणदशा का अर्थ यह है : जिसमें प्रश्न अर्थात् विद्याविशेषों का व्याकरण अर्थात् प्रतिपादन करने वाले दशा अर्थात् दस अध्ययन हैं वह प्रश्नव्याकरणदशा है । यह व्युत्पत्त्यर्थं पहले था । इस समय तो इसमें आस्रवपंचक और संवरपंचक का प्रतिपादन ही उपलब्ध है । प्रश्नाः - अङ्गुष्ठादिप्रश्नविधास्ता --- व्याक्रियन्ते - अभिधीयन्तेऽस्मिन्निति प्रश्नव्याकरण, क्वचित् 'प्रश्नव्याकरणदशा' इति दृश्यते, तत्र प्रश्नानां - - विद्याविशेषाणां यानि व्याकरणानि तेषां प्रतिपादनपरा दशा — दशाध्ययनप्रतिबद्धाग्रन्थपद्धतय इति प्रश्नव्याकरणदशा । अयं व्युत्पत्त्यर्थोऽस्य पूर्वकालेऽभूत् । इदानीं त्वास्रवपञ्चकसंवरपञ्चकव्याकृतिरेवोपलभ्यते । २ आगे आचार्य ने बताया है कि महाज्ञानी पूर्वाचार्यों ने इस युग के पुरुषों के स्वभाव को दृष्टि में रखते हुए ही उन विद्याओं के बदले पंचास्रव और पंचसंवर का वर्णन किया. प्रतीत होता है । प्रश्नव्याकरण-सुखबोधिका वृत्तिकार ज्ञानविमलसूरि ने भी इसी तथ्य का समर्थन किया हैं । 3 १. ( अ ) रायबहादुर धनपतसिंह, कलकत्ता, सन् १८७६. ( आ ) आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९१९. २. पू. १. Jain Education International ३. देखिये - प्रश्नव्याकरण - सुखबोधिकावृत्ति, पु. २ ( २ ). For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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