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________________ जैन साहित्य का बृहद इतिहास अर्थसहित नामावली दी गई है : १. उत्क्षिप्त- मेघकुमार के जीव द्वारा हाथी के भव में पाद का उत्क्षेप अर्थात् पैर ऊँचा उठाना, २. संघाटक-श्रेष्ठि और चौर का एक बन्धनबद्धत्व, ३. अण्डक-मयूराण्ड, ४. कूर्म-कच्छप, ५. शैलक-एक राजर्षि, ६. तुम्ब-अलाबु, ७. रोहिणी-एक श्रेष्ठिवधू, ८. मल्ली उन्नीसवीं तीर्थंकरी, ९. माकन्दी नामक व्यापारी का पुत्र, १०. चन्द्रमा, ११. दावद्रव-समुद्रतट के वृक्ष विशेष, १२. उदक-नगरपरिखाजल, १३. मण्डूकनन्द नामक मणिकार सेठ का जीव, १४. तेतलीपुत्र नामक अमात्य, १४. नन्दी फल-नन्दी नामक वृक्ष के फल, १६. अवरकंका-भरतक्षेत्र के धातकी खण्ड की राजधानी, १७. आकीर्ण-जन्म से समुद्र में रहने वाले अश्व-समुद्री घोड़े, १८. संसुमा-एक श्रेष्ठिदुहिता, १९. पुण्डरीक-एक नगर । इसके बाद विवरण कार ने क्रमशः प्रत्येक अध्ययन का व्याख्यान किया है। जिसमें मुख्यतया नये एवं कठिन शब्दों का अर्थ स्पष्ट किया गया है । आचार्य ने प्रत्येक अध्ययन की व्याख्या के अन्त में उससे फलित होने वाला विशेष अर्थ स्पष्ट किया है तथा उसकी पुष्टि के लिए तदर्थभित गाथाएँ भी उद्धृत की हैं। प्रथम अध्ययन के अभिधेय का सार बताते हुए वृत्तिकार कहते हैं कि अविधिपूर्वक प्रवृत्ति करने वाले शिष्य को मार्ग पर लाने के लिए गुरु को उसे उपालंभ देना चाहिए जैसा कि भगवान् महावीर ने मेधकुमार को दिया : अविधिप्रवृत्तस्य शिष्यस्य गुरुणा मार्गे स्थापनाय उपालम्भो देयो यथा भगवता दत्तो मेघकुमारायेत्येवमर्थं प्रथममध्ययनमित्यभिप्रायः।' इसी वक्तव्य को पुष्टि के लिए 'इह गाथा' ऐसा कहते हुए आचार्य ने निम्न गाथा उद्धृत को है :२ महुरेहिं निउणेहि वयणेहिं चोययंति आयरिया । सीसे कहिंचि खलिए जह मेहमुणिं महावीरो ॥१॥ ( मधुरैनिपुणैर्वचनैः स्थापयन्ति आचार्याः । शिष्यं क्वचित् स्खलिते यथा मेघमुनि महावीरः ॥ १ ॥) द्वितीय अध्ययन के अन्त में आचार्य लिखते हैं कि बिना आहार के मोक्ष के साधनों में प्रवृत्त न होने के कारण शरीर को आहार देना चाहिए जैसा कि धन सार्थवाह ने विजय चोर को दिया। इसी अभिधेयार्थ की पुष्टि के लिए आचार्य ने 'पठ्यते च ऐसा लिखते हुए निम्न गाथा उद्धृत की है : १. पृ० ७७ (१). २. वही. ३. पृ० ९० ( १). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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