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________________ अभयदेवविहित वृत्तियां ३७५ स्वतः सुबोधेऽपि शते तुरीये, व्याख्या मया काचिदियं विदृब्धा । दुग्धे सदा स्वादुतमे स्वभावात्, क्षेपो न युक्तः किमु शर्करायाः ॥ -चतुर्थ शतक का अन्त. वृत्ति के अन्त में आचार्य ने अपनी गुरु-परम्परा बताते हुए अपना नामोल्लेख किया है तथा बताया है कि अणहिलपाटक नगर में वि० सं० ११२८ में १८६१६ श्लोकप्रमाण प्रस्तुत वृत्ति समाप्त हुई : एकस्तयोः सूरिवरो जिनेश्वरः,ख्यातस्तथाऽन्यो मुनि बुद्धिसागरः । तयोविनेयेन विबुद्धिनाऽप्यलं वृत्तिः कृतैषाऽभयदेवसूरिणा ॥५॥ अष्टाविंशतियुक्ते वर्षसहस्रे शतेन चाभ्यधिके । अणहिलपाटकनगरे कृतेयमच्छुप्तधनिवसतौ ॥१५॥ अष्टादशसहस्राणि षट् शतान्यथ षोडश ।। इत्येवं मानमेतस्यां श्लोकमानेन निश्चितम् ॥१६॥ ज्ञाताधर्मकथाविवरण : प्रस्तुत विवरण' सूत्रस्पर्शी है । इसमें शब्दार्थ की प्रधानता है। प्रारम्भ में विवरणकार ने महावीर को नमस्कार किया है तथा ज्ञाताधर्मकथांग का विवरण प्रारम्भ करने का संकल्प किया है : नत्वा श्रीमन्महावीरं प्रायोऽन्यग्रंथवीक्षितः। ..ज्ञाताधर्मकथाङ्गस्यानुयोगः कश्चिदुच्यते ।।१॥ प्रथम सूत्र के व्याख्यान में चम्पा नगरी का परम्परागत परिचय दिया गया है। इसी प्रकार दूसरे सूत्र की व्याख्या में पूर्णभद्र नामक चैत्य-व्यन्तरायतन, तीसरे सूत्र की व्याख्या में कोणिक नामक राजा-श्रेणिकराजपुत्र तथा चतुर्थ सूत्र के विवरण में स्थविर सुधर्मा का परिचय है । पाँचवे सूत्र के व्याख्यान में ज्ञाताधर्मकथा के दो श्रुतस्कंधों अर्थात दो विभागों का परिचय देते हुए बताया गया है कि प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम ज्ञात है जिसका अर्थ होता है उदाहरण : ज्ञातानि उदाहरणानि प्रथमः श्रुतस्कन्धः।२ इसमें आचारादि की शिक्षा देने के उद्देश्य से कथाओं के रूप में विविध उदाहरण दिये गये हैं। द्वितीय श्रुतस्कन्ध का नाम धर्मकथा है। इसमें धर्मप्रधान कथाओं का समावेश किया गया है :धर्मप्रधानाः कथाः धर्मकथा इति द्वितीयः। तदनन्तर प्रथम श्रुतस्कन्धान्तर्गत निम्नलिखित १९ उदाहरणरूप कथाओं के अध्ययनों की १. आगमोदय समिति, मेहसाना, सन् १९१९. २. पृ०१० (१). ३. वही. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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