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________________ प्रास्ताविक जीतकल्पचूणि के कर्ता सिद्धसेनसूरि प्रसिद्ध सिद्धसेन दिवाकर से भिन्न हैं । इसका कारण यह है कि सिद्धसेन दिवाकर जीतकल्प सूत्र के प्रणेता आचार्य जिनभद्र के पूर्ववर्ती हैं जबकि चूर्णिकार सिद्धसेनसूरि आचार्य जिनभद्र के पश्चात्वर्ती हैं । इनका समय वि. सं. १२२७ के पूर्व है, पश्चात् नहीं, क्योंकि प्रस्तुत जीतकल्पणि की एक टीका जिसका नाम विषमपदव्याख्या है, श्रीचन्द्रसूरि ने वि. सं. १२२७ में पूर्ण की थी। प्रस्तुत सिद्धसेन संभवतः उपकेशगच्छीय देवगुप्तसूरि के शिष्य एवं यशोदेवसूरि के गुरुभाई हैं। बृहत्कल्पचूणिकार प्रलम्बसूरि वि. सं. १३३४ के पूर्व हुए हैं क्योंकि ताड़पत्र पर लिखित प्रस्तुत चूणि की एक प्रति का लेखन-समय वि. सं. १३३४ है। दशवकालिकणिकार अगस्त्यसिंह कोटिगणीय वज्रस्वामी को शाखा के एक स्थविर हैं : इसके गुरु का नाम ऋषिगुप्त है। इनका समय अज्ञात है । चूणि की भाषा, शैली आदि देखते हुए यह कहा जा सकता है कि चूर्णिकार विशेष प्राचीन नहीं है। नन्दोचूणि : यह चूणि मूल सूत्र का अनुसरण करते हुए लिखी गयी है । इसकी व्याख्यानशैली संक्षिप्त एवं सारग्राही है। इसमें मुख्यतया ज्ञान के स्वरूप की चर्चा है। अन्त में चूर्णिकार ने 'णिरेणगामेत्तमहासहा जिता.......' आदि शब्दों में अपना परिचय दिया है जो स्पष्ट नहीं है। अनुयोगद्वारचूणि : ___जिनदासगणिकृत प्रस्तुत चूणि भी मूल सूत्रानुसारी है। इसमें नन्दीचूणि का उल्लेख किया गया है। सप्तस्वर, नवरस आदि का भी इसमें सोदाहरण निरूपण किया गया है। अन्त में चूर्णिकार के नाम आदि का कोई उल्लेख नहीं है। आवश्यकचूणि : यह चूणि मुख्यतया नियुक्त्यनुसारो है । यत्र-तत्र विशेषावश्यकभाष्य की गाथाओं का भी व्याख्यान किया गया है। भाषा में प्रवाह एवं शैली में ओज है। विषय-विस्तार भी अन्य चूणियों की अपेक्षा अधिक है। कथानकों की प्रचुरता भी इसकी एक विशेषता है। इसमें ऐतिहासिक आख्यानों के विशेष दर्शन होते हैं। ओघनियुक्तिचूणि, गोविंदनियुक्ति, वसुदेवहिण्डि आदि अनेक ग्रन्थों का इसमें उल्लेख है । संस्कृत के अनेक श्लोक इसमें उद्धृत है। आवश्यक. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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