SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५० जैन साहित्य का बृहद् इति हास आवश्यकविवृति (मूलटीका? )' का भी उल्लेख किया है । विवरण में कहीं-कहीं पाठान्तर दिये गये हैं । प्रारम्भ में आचार्य ने वीर जिनेश्वर, श्रुतदेवता तथा जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का सादर स्मरण किया है : नतविबुधवधूनां कन्दमाणिक्यभास ___श्चरणनखमयूखैरुल्लसद्भिः किरन् यः । अकृत कृतजगच्छ्रोर्देशनां मानवेभ्यो, जनयतु जिनवीरः स्थेयसी वः स लक्ष्मीम् ॥१॥ विकचकेतकपत्रसमप्रभा, मुनिपवाक्यमहोदधिपालिनी । प्रतिदिनं भवताममराचिंता, प्रविदधातु सुखं श्रुतदेवता ॥२॥ यैर्भव्याम्बुरुहाणि ज्ञानकरैर्बोधितानि वः सन्तु । अज्ञानध्वान्तभिदे जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणपूज्यार्काः ॥३।। अन्तमें विवरणकार ने विशेषावश्यकभाष्यकार-सामायिकभाष्यकार आचार्य जिनभद्र (पूज्य) का पुनः स्मरण किया है : भाष्यं सामायिकस्य स्फुटविकटपदार्थोपगूढं यदेतत्, श्रीमत्पूज्यरकारि क्षतकलुषधियां भूरिसंस्कारकारि । तस्य व्याख्यानमात्रं किमपि विदधता यन्मया पुण्यमाप्त, . प्रेत्याहं द्राग्लभेयं परमपरिमितां प्रीतिमत्रैव तेन ।। प्रस्तुत विवरण का ग्रन्थमान १३७०० श्लोकप्रमाण है : ग्रन्थाग्रमस्या त्रयोदश सहस्राणि सप्तशताधिकानि ।' १. पुनर्लभन्नित्यमेव मिथ्यात्वं करिष्यति, तत्राप्यपूर्वमिवापूर्वमिति जिनभटाचार्यपादाः. उत्तरभाग का उपक्रम, पृ० ४. २. पृ० ३३८. ३. पृ० ९८१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy