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________________ ३४४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास विवेचन करते हुए आचार्य ने बन्धनपरिणाम के निम्नांकित लक्षण का समर्थन किया है । " तथा च समद्धिया बंधो ण होति समलुक्खयाए वि ण हेति । बेमाइयणिद्धलुक्खत्तणेण बंधो उ धाणं ॥ द्धिस्स णिद्वेण दुयाहिएणं लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिएणं । गिद्धस्स लुक्खेण उवेति बंधो जहण्णवज्जो विसमो समो वा ॥ आगे के पदों की व्याख्या में कषाय, इन्द्रिय, प्रयोग लेश्या, कार्यस्थिति, अन्तक्रिया, अवगाहना — संस्थानादि, क्रिया ( कायिकी, आधिकरणकी, प्राद्वेषिकी पारितानिकी और प्राणातिपातिकी), कर्मप्रकृति, कर्मबन्ध, आहारपरिणाम, उपयोग, पश्यत्ता, संज्ञा, संयम, अवधि, प्रवीचार, वेदना और समुद्धात का विशेष विवेचन किया गया है । तीसवें पद की व्याख्या में आचार्य ने उपयोग और पश्यत्ता की भेदरेखा खींचते हुए लिखा है कि पश्यत्ता में त्रैकालिक अवबोध होता है जबकि उपयोग में वर्तमान और त्रिकाल दोनों का अवबोध समाविष्ट है : अतो यत्र त्रैकालिकोऽवबोधोऽस्ति तत्र पासणया भवति, यत्र पुनर्वर्तमानकालस्त्र - कालिकश्च बोधः स उपयोग इत्ययं विशेषः । यही कारण है कि साकार उपयोग आठ प्रकार का है जबकि साकार पश्यत्ता छः प्रकार की है । साकार पश्यत्ता में साम्प्रतकालविषयक मतिज्ञान और मत्यज्ञानरूप साकार उपयोग के दो भेदों का समावेश नहीं किया जाता । आवश्यकवृत्ति : प्रस्तुत वृत्ति आवश्यक नियुक्ति पर है । कहीं-कहीं भाष्य की गाथाओं का भी उपयोग किया गया है । वृत्तिकार आचार्य हरिभद्र ने इस वृत्ति में आवश्यकचूर्णिका पदानुसरण न करते हुए स्वतंत्र रीति से नियुक्ति-गाथाओं का विवेचन किया है । प्रारम्भ में मंगल के रूप में श्लोक है : प्रणिपत्य जिनवरेन्द्रं वीरं श्रुतदेवतां गुरून् साधून् । आवश्यकस्य विवृति, गुरूपदेशादहं वक्ष्ये ॥ १ ॥ इसके बाद प्रस्तुत वृत्ति का प्रयोजन दृष्टि में रखते हुए बृत्तिकार कहते हैं : यद्यपि मया तथाऽन्यै कृताऽस्य विवृतिस्तथापि संक्षेपात् । क्रियते प्रयासोऽयम् ॥ २ ॥ तद्रुचिसत्त्वानुग्रहहेतोः 1 १. १०९८. २. पृ० १४९. ३ आगमोदय समिति, मेहसाना, सन् १९१६-७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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