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________________ आवश्यकचूर्णि २७५ भगवंतो। भग क्या है ? इसका उत्तर देते हुए चूर्णिकार ने निम्न श्लोक उद्धृत किया है : माहात्म्यस्य समग्रस्य, रूपस्य यशसः श्रियः । धर्मस्याथ प्रयत्नस्य, षण्णां भग इतींगना ॥१॥ सामायिक नामक प्रथम आवश्यक का व्याख्यान करते हुए चूर्णिकार ने सामायिक का दो दृष्टियों से विवेचन किया है : द्रव्यपरम्परा से और भावपरम्परा से । द्रव्यपरम्परा की पुष्टि के लिए यासासासा और मृगावतो के आख्यानक दिये हैं । आचार्य और शिष्य के सम्बन्ध को चर्चा करते हुए निम्न श्लोक उद्धृत किया है : आचार्यस्यैव तज्जाड्यं, यच्छिष्यो नावबुध्यते । गावो गोपालकेनैव, अतीर्थेनावतारिताः ॥ १ ॥ सामायिक का उद्देश, निर्देश, निर्गम आदि २६ द्वारों से विचार करना चाहिए,४ इस ओर संकेत करने के बाद आचार्य ने निगमद्वार की चर्चा करते हुए भगवान महावीर के ( मिथ्यात्वादि से ) निगम की ओर संकेत किया है तथा उनके भवों को चर्चा करते हुए भगवान् ऋषभदेव के धनसार्थवाह आदि भवों का विवरण दिया है। ऋषभदेव के जन्म, विवाह, अपत्य आदि का बहुत विस्तारपूर्वक वर्णन करने के बाद तत्कालीन शिल्प, कर्म, लेख आदि पर भी समुचित प्रकाश डाला है । ऋषभदेव के पुत्र भरत की दिग्विजय का वर्णन करने में तो चूर्णिकार ने सचमुच कमाल कर दिया है । युद्धकला के चित्रण में आचार्य ने सामग्री एवं शैली दोनों दृष्टियों से सफलता प्राप्त की है। चूणि के इसी एक अंश से चूर्णिकार के प्रतिपादन-कौशल एवं साहित्यिक अभिरुचि का पता लग सकता है । सैनिक प्रयाण का एक दृश्य देखिए : ____ असिखेवणिखग्गचावणारायकणमकप्पणिसूललउडाभिंडिमालधणुतोणसरपहरणेहि य कालणीलरुहिरपीतसुविकल्ललअणेगचिधसयसण्णिविटुं अफ्फोडितसीहणायच्छेलितहयहेसितहत्थिगुलुगुलाइतअणेगरहसयसहस्सघणघणेतणिहम्ममाणसद्द सहितेण जमगं समकं भंभाहोरंभकिणितखरमुहिमुगंदसंखीयपरिलिवव्वयपीरव्वायणिवंसवेणुवीणावियंचिमहतिकच्छभिरिगिसिगिकलतालकंसतालकर धाणुत्थिदेण संनिनादेण सकलमवि जीवलोगं पूरयते । ३. वही, पृ० १२१. १. वही, पृ० ८५. २. वही, पृ० ८७-९१. ४. देखिए-आवश्यकनियुक्ति, गा० १४०-१. ५. आवश्यकचूणि (पूर्वभाग ), पृ० १८७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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