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________________ चतुर्थ प्रकरण आवश्यकचूर्णि यह चूणि' मुख्यरूप से नियुक्ति का अनुसरण करते हुए लिखी गई है। कहीं-कहीं पर भाष्य की गाथाओं का भी उपयोग किया गया है। इसकी भाषा प्राकृत है किन्तु यत्र-तत्र संस्कृत के श्लोक, गद्यांश एवं पक्तियाँ उद्धृत की गई हैं । भाषा में प्रवाह है । शैली भी ओजपूर्ण है। कथानकों की तो इसमें भरमार है और इस दृष्टि से इसका ऐतिहासिक मूल्य भी अन्य चूणियों से अधिक है। विषय-विवेचन का जितना विस्तार इस चूणि में है उतना अन्य चूणियों में दुर्लभ है । जिस प्रकार विशेषावश्यकभाष्य में प्रत्येक विषय पर सुविस्तृत विवेचन उपलब्ध है उसी प्रकार इसमें भी प्रत्येक विषय का अति विस्तारपूर्वक व्याख्यान किया गया है। विशेषकर ऐतिहासिक आख्यानों के वर्णन में तो अन्त तक दृष्टि की विशालता एवं लेखनी की उदारता के दर्शन होते हैं । इसमें गोविन्दनियुक्ति, ओधनियुक्तिचूणि ( एत्यंतरे ओहनिज्जुत्तिचुन्नी भाणियव्या जाव सम्मता ), वसुदेव हिण्डि आदि अनेक ग्रंथों का निर्देश किया गया है। ___ उपोद्घातचूणि के प्रारम्भ में मंगलचर्चा की गई है और भावमंगल के रूप में ज्ञान का विस्तृत विवेचन किया गया है । श्रुतज्ञान के आविष्कार को दृष्टि में रखते हुए आवश्यक का निक्षेप-पद्धति से विचार किया गया है। द्रव्यावश्यक और भावावश्यक के विशेष विवेचन के लिए अनुयोगद्वार सूत्र की ओर निर्देश कर दिया गया है। श्रुतावतार की चर्चा करते हुए चूर्णिकार कहते हैं कि तीर्थंकर भगवान् के श्रुत का अवतार होता है। तीर्थंकर कौन होते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर चूर्णिकार ने निम्न शब्दों में दिया है : जेहि एवं दंसणणाणादिसंजुत्तं तित्थं कयं ते तित्थकरा भवंति, अहवा तित्थं गणहरा तं जेहिं कयं ते तित्थकरा, अहवा तित्थं चाउव्वन्नो संघो तं जेहिं कयं ते तित्थकरा । भगवान् की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है : भगो जेसिं अत्यि ते १. श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था, रतलाम, पूर्वभाग, सन् १९२८, उत्तरभाग, सन् १९२९. २. पूर्वभाग, पृ० ३१, २४१; उत्तरभाग, पृ० ३२४. ३. आवश्यकचूणि (पूर्वभाग), पृ० ७९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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