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________________ चूणियाँ प्रथम प्रकरण चूर्णियाँ और चूर्णिकार M !!! आगमों की प्राचीनतम पद्यात्मक व्याख्याएँ नियुक्तियों और भाष्यों के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे सब प्राकृत में हैं। जैनाचार्य इन पद्यात्मक व्याख्याओं से ही सन्तुष्ट होने वाले न थे। उन्हें उसी स्तर की गद्यात्मक व्याख्याओं की भी आवश्यकता प्रतीत हुई। इस आवश्यकता की पूर्ति के रूप में जैन आगमों पर प्राकृत अथवा संस्कृतमिश्रित प्राकृत में जो व्याख्याएँ लिखी गई हैं, वे चणियों के रूप में प्रसिद्ध हैं। आगमेतर साहित्य पर भी कुछ चूणियाँ लिखी गईं, किन्तु वे आगमों की चूर्णियों की तुलना में बहुत कम हैं। उदाहरण के लिए कर्मप्रकृति, शतक आदि की चूर्णियाँ उपलब्ध हैं : चणियाँ: निम्नांकित आगम-ग्रन्थों पर आचार्यों ने चूणियाँ लिखी हैं : १. आचारांग, २. सूत्रकृतांग, ३. व्याख्याप्रज्ञप्ति ( भगवती), ४. जीवाभिगम, ५. निशीथ, ६. महानिशीथ, ७. व्यवहार, ८. दशाश्रुतस्कन्ध, ९. बृहत्कल्प, १०. पंचकल्प, ११. ओघनियुक्ति, १२. जीतकल्प, १३. उत्तराध्ययन, १४. आवश्यक, १५. दशवैकालिक, १६. नन्दी, १७. अनुयोगद्वार, १८. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति । निशीथ और जीतकल्प पर दो-दो चूर्णियां लिखी गई, किन्तु वर्तमान में एक-एक ही उपलब्ध हैं । अनुयोगद्वार, बृहत्कल्प एवं दशवैकालिक पर भी दो-दो चूर्णियाँ हैं । चूणियों की रचना का क्या क्रम है, इस विषय में निश्चितरूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। चूणियों में उल्लिखित एक-दूसरे के नाम के आधार पर क्रमनिर्धारण का प्रयत्न किया जा सकता है। श्री आनन्दसागर सूरि के मत से जिनदासगणिकृत निम्नलिखित चूणियों का रचनाक्रम इस प्रकार है : नन्दीचूणि, अनुयोगद्वारचूर्णि, आवश्यकचूर्णि, दशवैकालिकचूणि, उत्तराध्ययनचूणि, आचारांगचूणि, सूत्रकृतांगचूणि और व्याख्याप्रज्ञप्तिचूणि ।' १. आर्हत आगमोनी चूणिओ अने तेनुं मुद्रण-सिद्धचक्र, भा. ९, अं. ८. पृ० १६५. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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