SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बृहदकल्प - बृहद्भाष्य के विषय में यह बात नहीं है । इस गाथा के व्याख्यान के रूप में बृहद्भाष्यकार ने चार नई गाथाओं की रचना की है ।" इस प्रकार बृहद्भाष्य में लघुभाष्य के विषयों का ही विस्तारपूर्वक विचार किया गया है । ऐसी दशा में पूरा बृहद्भाष्य एक विशालकाय ग्रन्थ होना चाहिए जिसका कलेवर लगभग पंद्रह हजार गाथाओं के बराबर हो । अपूर्ण उपलब्ध प्रति जिसका कलेवर पूरे ग्रन्थ का लगभग आधा है, अनुमानतः सात हजार गाथाप्रमाण है । ये गाथाएँ लघुभाष्य की गाथाओं ( तीन उद्देश ) से करीब दुगुनी हैं। लगभग इतनी ही गाथाएँ अनुपलब्ध अंश में भी होंगी, ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है । बृहद्भाष्य की प्रति में जो अक्षरपरावर्तन दृष्टिगोचर होता है उसके कुछ रूप नीचे दिये जाते हैं : प्रचलित रूप ण - ण्ण धि - ऊ घा अथवा हा tot व त द्ध त I Jain Education International परिवर्तित रूप -म -स्स - वि -ज -द्वा -प -न -घ २६५ १. पृ० १८- ९. २. मुनि श्री पुण्यविजयजी के अध्ययन के आधार पर । ३. निशीथभाष्य के परिचय के लिए आगे निशीथचूर्णि का परिचय देखिये । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy