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________________ व्यवहारभाष्य २४५ साध्वियां उसके साथ रहनी चाहिए। गणावच्छेदिनी के लिए कम से कम तीन साध्वियों को साथ रखने का नियम है। वर्षाऋतु के लिए उक्त संख्याओं में एक की वृद्धि की गई है । नायिका का देहावसान हो जाने पर अन्य नायिका की नियुक्ति के लिए वे ही नियम हैं जो चतुर्थ उद्देश में साधुओं के लिए बताये गये हैं। साधु को रात्रि के समय, संध्या के समय अथवा अन्य किसी समय सांप काट खाए तो सर्वप्रथम साधु और बाद में साध्वी, अन्य पुरुष अथवा स्त्री अपनी योग्यता के अनुसार उपचार करें। ऐसा करने पर साधु-साध्वी के लिए परिहारतप अथवा अन्य किसी प्रायश्चित्त का विधान नहीं है । यह नियम स्थविरकलियों के लिए है। जिनकल्पो को यदि साँप काट खाए तो भी वह दूसरे से किसी प्रकार का उपचार आदि नहीं करा सकता। भाष्यकार ने 'जे निग्गंथा निग्गंथोओ य संभोइया "' ( सूत्र १९ ) की व्याख्या करते हुए 'संभोगिक' का विस्तारपूर्वक विवेचन किया है । 'संभोग' छः प्रकार का होता है : ओघ, अभिग्रह, दानग्रहण, अनुपालना, उपपात और संवास । ओघसंभोग के बारह भेद हैं : उपधि, श्रुत, भक्तपान, अंजलीग्रह, दापना, निकाचन, अभ्युत्थान, कृतिकर्म, वैयावृत्य, समवसरण, सन्निषद्या और कथाप्रबन्धनविषयक । उपसंभोग के छः भेद हैं : उद्गमशुद्ध, उत्पादनाशुद्ध, एषणाशुद्ध, परिकर्मणासंभोग, परिहरणासंभोग और संयोगविषयक । इस प्रकार निशीथ के पञ्चम उद्देश में वर्णित संभोगविधि, प्रायश्चित्त आदि के अनुसार यहाँ भी 'संभोग' का वर्णन समझ लेना चाहिए। षष्ठ उददेश : इस उद्देश में बताया गया है कि साधु को अपने सम्बन्धी के यहां से आहार आदि ग्रहण करने की इच्छा होने पर अपने से वृद्ध स्थविर आदि की आज्ञा लिए बिना वैसा करना अकल्प्य है। बिना स्थविर आदि की आज्ञा के अपने सम्बन्धी के यहाँ से आहार लेनेवाले के लिए छेद अथवा परिहारतप के प्रायश्चित्त का विधान है। आज्ञा मिलने पर भी यदि जानेवाला साधु अल्पबोध हो तो उसे अकेले न जाकर किसी बहुश्रुत साधु के साथ ही जाना चाहिए । वहाँ जाने पर उसके पहुँचने के पूर्व यदि भोजन तैयार किया हुआ हो तो उसे लेना चाहिए अन्यथा नहीं । आचार्य तथा उपाध्याय के पाँच अतिशय होते हैं जिनका समुदाय के अन्य साधुओं को विशेष ध्यान रखना चाहिए : (१) उनके बाहर से आने पर पैरों को रज आदि को साफ करना तथा प्रमार्जन करना, (२) उनके उच्चार-प्रस्त्रवण आदि ( अशुचि ) को निर्दोष स्थान में फेंकना, ( ३ ) उनकी इच्छा होने पर १. पंचम उद्देश : गा० ४६-५२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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