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________________ बृहत्कल्प-लघुभाष्य २०९ वादिक रूप से बिना द्वार के उपाश्रय में रहने की विधि, इस प्रकार के उपाश्रय में द्विदलकटादि बाँधने की विधि, द्वारपालिका श्रमणी और उसके गुण, गणिनी, द्वारपालिका-प्रतिहारसाध्वी एवं अन्य साध्वियों के निवास स्थान का निर्देश, प्रस्रवणपेशाब आदि के लिये बाहर जाने-आने में विलम्ब करने वाली श्रमणियों को फटकारने को विधि, श्रमणी के बजाय कोई अन्य व्यक्ति उपाश्रय में न घुस जाए इसके लिए उसकी परीक्षा करने की विधि, प्रतिहारसाध्वी द्वारा उपाश्रय के द्वार की रक्षा, शयनसम्बन्धी यतनाएँ, रात्रि के समय कोई मनुष्य उपाश्रय में घुस जाए तो उसे बाहर निकालने को विधि, विहार आदि के समय मार्ग में आने वाले गाँवों में सुरक्षित द्वार वाला उपाश्रय न मिले तथा कोई अनपेक्षित भयप्रद घटना घट जाए तो तरुण और वृद्ध साध्वियों को किस प्रकार उसका सामना करना चाहिए इसका निर्देश। साधु बिना दरवाजे के उपाश्रय में रह सकते हैं। उन्हें उत्सर्गरूप से उपाश्रय का द्वार बन्द नहीं करना चाहिए किन्तु अपवादरूप से वैसा किया जा सकता है । अपवादरूप कारणों के विद्यमान रहते हुए द्वार बन्द न करने पर प्रायश्चित्त का विधान है। घटीमात्रकप्रकृतसत्र : श्रमणियों के लिए घटोमात्रक-घड़ा रखना व उसका उपयोग करना विहित है किन्तु श्रमणों के लिए घटोमात्रक रखना अथवा उसका उपयोग करना निषिद्ध है । निष्कारण घटीमात्रक रखने से साधुओं को दोष लगते हैं । हाँ, अपवादरूप में उनके लिए घटीमात्रक रखना वर्जित नहीं है । श्रमण-श्रमणियाँ विशेष कारणों से घटीमात्रक रखते हैं व उसका प्रयोग करते हैं । घटीमात्रक पास न होने की अवस्था में उन्हें विविध यतनाओं का सेवन करना पड़ता है । चिलिमिलिकाप्रकृतसूत्र : निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियां वस्त्र को चिलिमिलिका-परदा रख सकते हैं व उसका प्रयोग कर सकते हैं । चिलिमिलिका का स्वरूप वर्णन करने के लिए भाष्यकार ने निम्न द्वारों का आश्रय लिया है : १. भेदद्वार, २. प्ररूपणाद्वार-सूत्रमयी, रज्जुमयी, वल्कलमयो, दण्डकमयो और कटकमयो चिलिमिलिका, ३. द्विविधप्रमाणद्वार, ४. उपभोगद्वार । दकतीरप्रकृतस्त्र : निर्ग्रन्थ-निग्रंन्थियों के लिए जलाशय, नदी आदि पानी के स्थानों के पास १. गा० २३२६-२३५२. ३. गा० २३६१-२३७०. १४ २. गा० २३५३-२३६१. ४. गा० २३७१-२३८२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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