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________________ विशेषावश्यकभाष्य १७१ __ इस प्रकार जब भगवान महावीर ने प्रभास का संशय दूर किया तब उन्होंने भी अपने तीन सौ शिष्यों सहित भगवान् से जिनदीक्षा अंगीकार की।' यहाँ तक गणघरवाद का अधिकार है। भगवान् महावीर को केवलज्ञान होने पर जिन ग्यारह पंडितों ने उनके साथ विविध दार्शनिक विषयों पर चर्चा की तथा उस चर्चा से संतुष्ट होकर भगवान् के प्रमुख शिष्य बने वे ही जैन-साहित्य में ग्यारह गणघरों के रूप में प्रसिद्ध हैं। सामायिक की व्याख्या करते हुए भाष्यकार ने उद्देश, निर्देश, निर्गम, क्षेत्र, काल आदि द्वारों की ओर संकेत किया तथा उनमें से तृतीय द्वार निर्गम अर्थात् उत्पत्ति की चर्चा करते हुए यह बताया कि जिस द्रव्य से सामायिक का निर्गम हुआ है वह द्रव्य यहाँ पर भगवान् महावीर के रूप में है। इस प्रकार भगवान् महावीर का प्रसंग सामने रखते हुए भाष्यकार ने गणधरवाद की विस्तृत चर्चा की। क्षेत्र और काल : क्षेत्र नामक चतुर्थ द्वार की चर्चा करते हुए आचार्य कहते हैं कि सर्वप्रथम महासेनवन नामक उद्यान में भगवान् महावीर ने सामायिक का प्ररूपण किया और उसके बाद परंपरा से अन्यत्र भी प्ररूपण किया गया। यह प्रथम प्ररूपण किस काल में हुआ? वैशाख शुक्ला एकादशी के पूर्वाह्न काल अर्थात् प्रथम पौरुषी में सामायिक का निर्गम हुआ। इस प्रकार क्षेत्र और काल के रूप में चतुर्थ और पंचम द्वारसम्बन्धी चर्चा पूर्ण होती है। पुरुष : षष्ठ द्वार पुरुष की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि पुरुष के अनेक भेद हैं : द्रव्यपुरुष, अभिलापपुरुष, चिह्नपुरुष, धर्मपुरुष, अर्थपुरुष, भोगपुरुष, भावपुरुष । शुद्धजीव तीर्थकररूप पुरुष भावपुरुष कहलाता है। प्रकृत में भावपुरुष का ग्रहण करना चाहिए।" कारण : सप्तम द्वार कारण का व्याख्यान करते हुए आचार्य कहते हैं कि कारण का निक्षेप चार प्रकार का है : नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । इनमें से द्रव्यकारण के दो भेद हैं : तद्रव्य और अन्यद्रव्य; अथवा निमित्त और नैमित्तिक; अथवा समवायी और असमवायी। इसके छः भेद भी हो सकते हैं : कर्ता, करण, १. गा० २०२४. २. गा. १४८४-५. ३. गा. १५३१-१५४६. ४. गा० २०८३. ५. गा० २०९०-७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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