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________________ १३७ विशेषावश्यकभाष्य निक्षेप : निक्षेप के तीन भेद है : ओघनिष्पन्न, नामनिष्पन्न तथा सूत्रालापकनिष्पन्न । श्रुत के अंग, अध्ययन आदि सामान्य नाम ओघ है। प्रस्तुत सामायिक श्रुत का ओघ चार प्रकार का है : अध्ययन, अक्षीण, आय तथा क्षपणा । शुभ अध्यात्मानयन का नाम अध्ययन है। यह बोध, संयम, मोक्ष आदि की प्राप्ति में हेतुभूत है। जो अनवरत वृद्धि की ओर अग्रसर है वह अक्षीण है। जिससे ज्ञानादि का लाभ होता है वह आय है। जिससे पापकर्मों की निर्जरा होती है वह क्षपणा है। 'प्रस्तुत अध्ययन का एक विशेष नाम ( सामायिक ) है। यही नाम निक्षेप है । "करेमि भन्ते !' आदि सूत्रपदों का न्यास ही सूत्रालापकनिक्षेप है।' अनुगम: ____ अनुगम दो प्रकार का है : नियुक्त्यनुगम तपा सूत्रानुगम । नियुक्ति के पुनः तीन भेद है : निक्षेपनियुक्ति, उपोद्घातनियुक्ति एवं सूत्रस्पशिकनियुक्ति । भाष्यकार ने इन भेदों का विस्तृत वर्णन किया है। नय: किसी भी सूत्र की व्याख्या करते समय सब प्रकार के नयों की परिशुद्धि का विचार करते हुए निरवशेष अर्थ का प्रतिपादन किया जाता है। यही नय है । ३ यहाँ चार प्रकार के अनुयोगद्वारों की व्याख्या समाप्त होती है । उपोद्घात-विस्तार : भाष्यकार कहते हैं कि अब मैं मंगलोपचार करके शास्त्र का विस्तारपूर्वकउपोद्घात करूँगा। यह मंगलोपचार मध्यमंगलरूप है। मैं सर्वप्रथम अनुत्तर 'पराक्रमी, अमितज्ञानी, तीर्ण, सुगतिप्राप्त तथा सिद्धिपथप्रदर्शक तीर्थंकरों को नमस्कार करता हूँ। जिससे तिरा जाता है अथवा जो तिरा देता है अथवा जिसमें तैरा जाता है उसे तीर्थ कहते हैं। वह नामादि भेद से चार प्रकार का है। सरित्-समुद्र आदि का कोई भी निरपाय नियत भाग द्रव्यतीर्थ कहलाता है क्योंकि वह देहादि द्रव्य को ही तिरा सकता है। जो लोग यह मानते हैं कि नद्यादि तीर्थ भवतारक हैं उनकी यह मान्यता ठीक नहीं है क्योंकि स्नानादि जीव का उपघात करने वाले हैं। इनसे पुण्योपार्जन नहीं होता। यदि कोई यह कहे कि जाह्नवीजलादिक तीर्थरूप ही है क्योंकि उनसे दाहनाश, पिपासोपशमादि कार्य सम्पन्न होते हैं और इस प्रकार वे देह का उपकार करते हैं, यह ठीक नहीं । ऐसा मानने पर मधु, मद्य, मांस, वेश्या आदि भी तीर्थरूप हो जाएंगे क्योंकि वे १. गा० ९५७-९७०. ३. गा० १००८-१०११. २. गा० ९७१-१००७. ४. गा० १०१४-६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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