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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास का है । पाप, वय, वैर, पंक, पनक, क्षोभ, असात, संग, शल्य, अतर, निरति और धूर्त्य मोह के पर्यायवाची हैं :
पावे वज्जे वेरे पंके पणगे खुहे असाए य ।
संगे सल्लेयरेए निरए धुत्ते य एगट्ठा ॥ दशम अध्ययन में आजातिस्थान का अधिकार है। आजाति अर्थात् जन्ममरण के क्या कारण है और अनाजाति अर्थात् मोक्ष किस प्रकार प्राप्त होता है ? इन दोनों प्रश्नों का प्रस्तुत अध्ययन की नियुक्ति में समाधान किया गया है ।
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