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________________ दशवैकालिकनियुक्ति अतः महत् का निक्षेप करते हुए कहा गया है कि नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, प्रधान, प्रतीत्य और भाव-इन आठ भेदों के साथ महत का विचार करना चाहिए । क्षुल्लक महत् का प्रतिपक्षी है अतः उसके भी ये ही आठ भेद हैं। आचार का निक्षेप नामादि भेद से चार प्रकार का है। नामन, धावन, वासन, शिक्षापन आदि द्रव्याचार हैं। भावाचार पांच प्रकार का है : दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य ।' कथा चार प्रकार की होती है : अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा और मिश्रकथा । अर्थकथा के निम्नोक्त भेद हैं : विद्या, शिल्प, उपाय, अनिर्वेद, संचय, दक्षत्व, साम, दण्ड, भेद और उपप्रदान । कामकथा के निम्नलिखित भेद हैं : रूप, वय, वेष, दाक्षिण्य, विषयज्ञ, दृष्ट, श्रुत, अनुभूत और संस्तव । धर्मकथा चार प्रकार की है : आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी और निर्वेदनी। धर्म, अर्थ और काम से मिश्रित कथा का नाम मिश्रकथा है। कथा से विपक्षभूत विकथा है। उसके स्त्रीकथा, भक्तकथा, राजकथा, चौरजनपदकथा, नटनर्तक जल्ल मुष्टिककथा आदि अनेक भेद हैं । श्रमण को चाहिए कि वह क्षेत्र, काल, पुरुष, सामर्थ्य आदि का ध्यान रखते हुए अनवद्य कथा का व्याख्यान करे । चतुर्थ अध्ययन का नाम षड्जीवनिकाय है। इसकी नियुक्ति में एक, छः, जीव, निकाय और शस्त्र का निक्षेप-पद्धति से विचार किया गया है। आचार्य ने जीव के निम्नोक्त लक्षण बताये हैं : आदान, परिभोग, योग, उपयोग, कषाय, लेश्या, आन, आपान, इन्द्रिय, बन्ध, उदय, निर्जरा, चित्त, चेतना, संज्ञा, विज्ञान, धारणा, बुद्धि, ईहा, मति, वितर्क । शस्त्र की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि द्रव्यशास्त्र स्वका य, परकाय अथवा उभयकायरूप होता है । भावशस्त्र असंयम है।४ पिण्डषणा नामक पंचम अध्ययन की नियुक्ति में आचार्य भद्रबाहु ने पिण्ड और एषणा इन दो पदों का निक्षेपपूर्वक व्याख्यान किया है। गुड़, ओदन आदि द्रव्यपिण्ड हैं । क्रोधादि चार भावपिण्ड है । द्रव्यषणा तीन प्रकार की है : सचित्त, अचित्त और मिश्र । भावैषणा दो प्रकार की है : प्रशस्त और अप्रशस्त । ज्ञानादि प्रशस्त भावैषणा है । क्रोधादि अप्रशस्त भावैषणा है। प्रस्तुत अधिकार द्रव्यैषणा का है।" षष्ठ अध्ययन का नाम महाचारकथा है । इसकी नियुक्ति में आचार्य ने यह निर्देश किया है कि क्षुल्लिकाचारकथा की नियुक्ति में महत्, आचार और १. गा. १७८-१८७. ३. गा. २२३-४. २. गा. १८८-२१५. ४. गा. २३१. ५. गा. २३४-२४४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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