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________________ जीवाजीवाभिगम ७ पाँचवीं प्रतिपत्तिः इसमें बताया है कि संसारी जीव छः प्रकार के होते हैं-पृश्वीकायिक, अकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक । निगोद दो प्रकार के होते हैं-निगोद और निगोदजीव (२२८-२३९)। छठी प्रतिपत्ति: ___ इसमें बताया है कि संसारी जीव सात प्रकार के होते हैं-नैरयिक, तिर्यंच, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य, मानुषी, देव और देवी ( २४० )। सातवीं प्रतिपत्ति: इसमें बताया है कि संसारी जीव आठ प्रकार के होते हैं-प्रथम समय नैरयिक, अप्रथम समय-नैरयिक, प्रथम समय-तिर्यचयोनिक, अप्रथम समय-तिर्यंचयोनिक, प्रथम समय-मनुष्य, अप्रथम समय-मनुष्य, प्रथम समय-देव व अप्रथम समय-देव (२४१)। आठवीं प्रतिपत्ति: इसमें बताया है कि संसारी जीव नौ प्रकार के होते हैं-पृथ्वीकायिक, अकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय । नौवीं प्रतिपत्ति: इसमें जीवों का सिद्ध-असिद्ध, सेन्द्रिय-अनिन्द्रिय, ज्ञानी-अज्ञानी, आहारक-अनाहारक, भाषक-अभाषक, सम्यग्दृष्टि-मिथ्यादृष्टि, परीत्त-अपरीत्त, पर्याप्तक-अपर्याप्तक, सूक्ष्म-बादर, संजी-असंज्ञी, भवसिद्धिक अभवसिद्धिक, योग, वेद, दर्शन, संयत, असंयत, कषाय, ज्ञान, शरीर, काय, लेश्या, योनि, इन्द्रिय आदि की अपेक्षा से वर्णन किया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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