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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास होना ), गर्जित, विद्युत् , उल्कापात, दिशादाह, निर्घात, ( बिजली का गिरना), पांशुवृष्टि, यूपक ( शुक्ल पक्ष के द्वितीया आदि तीन दिनों में चन्द्र की कला और सन्ध्या के प्रकाश का मिलन ), यक्षदीप्तक, धूमिका (धुंआसा), महिका (कुहरा ), रज-उद्धात (दिशाओं में धूल का फैल जाना), चन्द्रोपराग (चन्द्रग्रहण ), सूर्योपराग (सूर्यग्रहण ), चन्द्रपरिवेश, सूर्यपरिवेश, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य ( इन्द्रधनुष का एक टुकड़ा), कपिहसित (आकाश में अकस्मात् भयंकर शब्द होना ), प्राचीनवात, अप्राचीनवात, शुद्धवात, ग्रामदाह, नगरदाह आदि ।
कलह के प्रकार-डिम्ब ( अपने देश में कलह ), डमर ( परराज्य द्वारा उपद्रव ), कलह, बोल, खार (मात्सर्य), वैर, विरुद्धराज्य' ।
युद्ध के नाम--महायुद्ध, महासंग्राम, महाशस्त्रनिपतन, महापुरुषत्राण, महारुधिरबाण, नागवाण, तामसवाण ।
रोगों के नाम-दुर्भूत ( अशिब ), कुलरोग, ग्रामरोग, नगररोग, मंडलरोग, शिरोवेदना, अक्षिवेदना, कर्णवेदना, नासिकावेदना, दन्तवेदना, नखवेदना, कास (खाँसी), श्वास, ज्वर, दाह, कच्छू (खुजली), खसर, कोढ़, अश, अजीर्ण, भगन्दर, इन्द्रग्रह, स्कन्दग्रह, नागग्रह, भूतग्रह, उद्वेग, एकाहिका (एक. दिन छोड़ कर ज्वर आना), द्वयाहिका (दो दिन छोड़ कर ज्वर आना ), व्याहिका, चतुर्थका (चौथिया), हृदयशूल, मस्तकशूल, पार्श्वशूल, कुक्षिशूल,. योनिशूल, मारी ( १११)।
देवों के प्रकार-देव चार प्रकार के होते हैं-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी, वैमानिक । भवनवासी दस होते हैं-असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्यु - कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार ( ११४-१२०)। व्यन्तरों के अनेक प्रकार हैं-पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, भुजगपति, महाकाय, गन्धर्वगण आदि (१२१)। ज्योतिष्क देवों का वर्णन सूत्र १२२ में है । ___ पद्मवरवेदिका-द्वीप-समुद्रों में जम्बूद्वीप का वर्णन करते हुए उसके प्राकार के मध्यभाग में स्थित पद्मवरवेदिका का वर्णन किया गया है। वेदिका नेम (दहलीज), प्रतिष्ठान (नीव), खंभे, फलग (पटिये), संधि ( सांधे), सूची ( नली), कलेवर ( मनुष्यप्रतिमा), कलेवरसंघाटक, रूपक ( हस्त्यादीनां
1. बृहस्कल्पसूत्र और उसके भाष्य में इस नाम का एक महत्त्वपूर्ण प्रकरण है।
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