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________________ राजप्रश्नीय सेनापति बैठे हुए थे और उनके पीछे अनेक देवी-देवता थे। सूर्याभदेव और देवी-देवताओं को लिये विमान बड़े वेग से चल रहा था (४७)। यह विमान सौधर्म स्वर्ग से चलकर असंख्य द्वीप-समुद्रों को लाँवता हुआ भारतवर्ष में आ पहुँचा और फिर आमलकप्पा नगरी की ओर मुड़कर आम्रशालवन चैत्य में उतरा। अपने कुटुम्ब-परिवार सहित विमान में से उतर कर सूर्याभदेव ने महावीर की प्रदक्षिणा की और नमस्कार पूर्वक उनके पास बैठ विनयपूर्वक उनकी पर्युपासना करने लगा (४८-५०)। ___ तत्पश्चात् महावीर का धर्मोपदेश हुआ। उपदेश श्रवण कर आमलकप्पा के राजा, रानी तथा अन्य नगरवासी अपने-अपने स्थानों को लौट गए। इस अवसर पर सूर्याभदेव ने महावीर से कतिपय प्रश्न पूछे और फिर गौतम आदि निर्ग्रन्थ श्रमणों के समक्ष बत्तीस प्रकार की नाट्यकला प्रदर्शित करने की इच्छा व्यक्त की' (५१-५५)। प्रेक्षामण्डप: सूर्याभदेव ने प्रेक्षामण्डप की रचना की और पूर्वोक्त प्रकार से प्रेक्षकों के बैठने का स्थान, मणिपीठिका, सिंहासन आदि निर्मित किये। तत्पश्चात् एक ओर से रूप-यौवनसम्पन्न नाटकीय उपकरणों और वस्त्राभूषणों से सजित उत्तरीय वस्त्र पहिने हुए चित्र विचित्र पट्टों से शोभित एक सौ आठ देवकुमार, और दूसरी ओर तिलक आदि से विभूषित ग्रीवाभरण और कंचुक पहने हुए, नाना मणि, कनक और रत्नों के आभूषण धारण किये हुए, हास्य और संलाप आदि में कुशल एक सौ आठ देवकुमारियाँ आविर्भूत हुई (५६-५८)। वाद्य : ___ तत्पश्चात् सूर्याभदेव ने निम्नलिखित वाद्य तैयार किये-शंख, शृंग, शृंखिका, खरमुही ( काहला), पेया ( महती काहला), पिरिपिरिका ( कोलिकमुखावनद्धमुखवाद्य ), पणव (लघुपटह) पटह, भंभा (ढक्का ), होरम्भा ( महाढका). भेरी ( ढक्काकृति वाद्य ), झल्लरी (चर्मविनद्धा विस्तीर्णवलयाकारा), दुन्दुभी १. महावीर के इस ओर कोई ध्यान न देने का कारण बताते हुए टीकाकार ने लिखा है कि वे स्वयं वीतरागी हैं और नाट्य गौतम आदि श्रमणों के स्वाध्याय में विनकारक है (सूत्र ५५ टीका)। २. प्रेक्षागृह के वर्गन के लिए देखिये-जीवाजीवाभिगम, ३ पृष्ठ १४६ अ । ३. यह बायें हाथ में पकड़कर दायें हाथ से बजाई जाती है, शार्गधर, संगीत रत्नाकर, ६,१२३७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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