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________________ राजप्रश्नीय चैत्य था। यह चैत्य वेदी, छत्र, ध्वजा और घण्टे से शोभित था। रुएँ की बनी मार्जनी (झाड़ ) से यहाँ बुहारी दी जाती थी। गोशीर्ष और रक्त चन्दन के पाँच उँगलियों के थापे यहाँ लगे थे। द्वार पर चन्दन कलश रखे थे, तोरण बँधे थे और पुष्पमालाएँ लटक रही थीं। यह चैत्य विविध रंगों के पुष्प, कुन्दुवक (चीडा), तुरुष्क (सिल्हक) और गंधगुटिकाओं की सुगन्धि से महकता था। नट, नर्तकी आदि यहाँ अपना खेल दिखाते और भक्त लोग अपनी मनोकामना की सिद्धि के लिए पूजा अर्चना किया करते थे (२)। यह चैत्य एक वनखण्ड से वेष्टित था जिसमें अनेक प्रकार के वृक्ष लगे हुए थे । वृश्च पत्र, पुष्प और फलों से आच्छादित थे जिनपर नाना पक्षी क्रीड़ा करते थे। ये वृक्ष भाँति-भाँति की लताओं से परिवेष्टित थे। यहाँ रथ आदि वाहन खड़े किए जाते थे (३)। चम्पा नगरी में सेय' नामक राजा राज्य करता था। यह राजा कुलीन, राजलक्षणों से संपन्न, राज्याभिषिक्त, विपुल भवन, शयन, आसन, यान, वाहन, सोना, चाँदी, दास और दासी का स्वामी तथा कोष, कोष्ठागार और आयुधागार का अधिपति था (५)। ___ राजा सेय की रानी धारिणी लक्षण और व्यंजन-युक्त, सर्वांगसुन्दरी और संलाप आदि में कुशल थी। राजा और रानी कामभोगों का सेवन करते हुए सुखपूर्वक समय यापन करते थे। (६)। ____एक बार की बात है, महावीर अनेक श्रमण और श्रमणियों से परिवेष्टित ग्रामानुग्राम विहार करते हुए आमलकप्पा नगरी में पधारे और नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व में स्थित अम्रशालवन चैत्य में पूर्ववर्णित वनखंड से सुशोभित अशोक वृक्ष के नीचे, पूर्व की ओर मुँह करके एक शिलापट्ट पर पर्यकासन से आसीन हो, संयम और तप में लीन हो गये (७-९)। १. ठाणांग ( ८.६२१ ) में महावीर द्वारा दीक्षित किए हुए आठ राजाओं में सेय का भी उल्लेख है। ठाणांग के टीकाकार अभयदेव के अनुसार यह राजा आमलकप्पा का स्वामी था। मलयगिरि ने सेय का संरकृत रूपान्तर श्वेत किया है। . २. रानी धारिणी को उववाइय सूत्र में राजा कूणिक की रानी कहा गया है। आमलकप्पा-चम्पा, आम्रशालवन-पूर्णभद्र और कूणिक-सेय आदि वर्णक रायपसेणइय और उववाइय में समान हैं। धारिणी के नाम की जगह . यहाँ और कोई नाम होना चाहिए था, संभवतः वह बदलने से रह गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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