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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कुडिव्वय - जो घर में रहते हों तथा क्रोध, लोभ और मोहरहित होकर अहंकार का त्याग करने के लिए प्रयत्नशील हों' कण्हपरिव्वायग— कृष्ण परिव्राजक अथवा नारायण के भक्त ( ३८ ) | ब्राह्मण परिव्राजक : २४ कण्डु ( अथवा कण ), कर कंडु, अंड', परासर, दीवाण देवगुप्त, और णारय । क्षत्रिय परिव्राजक : सेई. ससिहार ( ससिहर अथवा मसिहार ? ), गई (नग्नजित् ), भग्गई, विदेह, रायाराय ( ? ), रायाराम ( ? ), और बल ( ? ) । ये परिव्राजक ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, इतिहास और निघंटु के सांगोपांगवेत्ता, षष्ठितंत्र में विशारद, गणित, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छंद, निरुक्त, और ज्योतिषशास्त्र तथा अन्य ब्राह्मण ग्रंथों में निष्णात थे । ये दान, शौच और तीर्थ २. १. हरिभद्र ने षड्दर्शनसमुच्चय ( पृ० ८ अ ) तथा एच० एच० विल्सन ने रिलीजन्स ऑफ हिन्दूज़, भाग १ ( पृ० ३१ आदि ) में हंस, परमहंस आदि का वर्णन किया है । ऋषिभाषित, थेरीगाथा ( ११६ ) और महाभारत (१, ११४, ३५ ) में उल्लेख है । 3 ३. कण्हदीवायण का जातक ( ४, पृ० ८३, ८७ ) और महाभारत ( १ ११४, ४५ ) में उल्लेख है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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