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________________ नवम प्रकरण देवेन्द्रस्तव देविंदथय-देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक में ३०७ गाथाएँ हैं। इसमें बत्तीस देवेन्द्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। प्रारम्भ में कोई श्रावक ऋषभादि तीर्थङ्करों को वन्दन करके अन्तिम तीर्थङ्कर वर्धमान महावीर की स्तुति करता है। बत्तीस देवेन्द्रों से पूजित महावीर की स्तुति कर वह अपनी पत्नी के सम्मुख उन इन्द्रों की महिमा का वर्णन करता है। इस वर्णन में निम्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है : बत्तीस देवेन्द्रों के नाम, आवास, स्थिति, भवन, विमान, नगर, परिवार, श्वासोच्छ्वास, अवधिज्ञान आदि । एतद्विषयक गाथाएँ इस प्रकार हैं : कयरे ते बत्तीसं देविंदा को व कत्थ परिवसइ । केवइया कस्स ठिई को भवणपरिग्गहो तस्स ॥८॥ केवइया व विमाणा भवणा नगरा व हुंति केवइया। पुढवीण व बाहल्लं उच्चत्त विमाणवण्णो वा ॥१॥ का रंति व का लेणा उक्कोसं मज्झिम जहण्णं ।। उस्सासो निस्सासो ओही विसओ व को केसि ।। १०॥ अन्त में आचार्य ने यह उल्लेख किया है कि भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क रवं वैमानिक देवनिकायों की स्तुति समाप्त हुई : भोमेज्जवणयराणं जोइसियाणं विमाणवासीणं । देवनिकायाणं थवो समत्तो अपरिसेसो ॥ ३०७ ॥ @ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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