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________________ अष्टम प्रकरण गणिविद्या गणिविज्जा-गणिविद्या में ८२ गाथाएँ हैं । यह गणितविद्या अर्थात् ज्योतिविद्या का ग्रन्थ है । इसमें निम्नोक्त नौ विषयों (नवबल) का विवेचन है : १. दिवस, २. तिथि, ३. नक्षत्र, ४. करण, ५. ग्रहदिवस, ६. मुहूर्त, ७. शकुन, ८. लग्न, ९. निमित्त । प्रारम्भ में ग्रन्थकार ने प्रवचनशास्त्र के अनुसार नवबल के रूप में बलाबल का विचार करने का संकल्प किया है । तदनन्तर नवबल का नामोल्लेख किया है : वुच्छं बलाबलविहिं नवबलविहिमुत्तमं विउपसत्थं । जिणवयणभासियमिणं पवयणसत्थम्मि जह दिट्ठ ॥ १ ॥ दिवस तिही नक्खत्ता करणग्गहदिवसया मुहुत्तं च । सउणबलं लग्गबलं निमित्तबलमुत्तमं बावि ॥ २ ॥ अन्त में ग्रन्थकार ने यह बताया है कि दिवस से तिथि बलवान् होती है, तिथि से नक्षत्र, नक्षत्र से करण, करण से ग्रहदिवस, ग्रहदिवस से मुहूर्त, मुहूर्त से शकुन, शकुन से लग्न तथा लग्न से निमित्त बलवान् होता है । यह बलाबलविधि संक्षेप में सुविहितों ने बताई है : दिवसाओ तिही बलिओ तिहीउ बलियं तु सुव्वई रिक्खं । नक्खन्ता करणमाहंसु करणाउ गहदिणा बलिणो ॥ ७९ ॥ गहदिणाउ मुहुत्ता, मुहुत्ता सउणो बली । सउणाओ बलवं लग्गं, तओ निमित्तं पहाणं तु ॥ ८० ॥ विलग्गाओ निमित्ताओ, निमित्तबलमुत्तमं । न तं संविज्जए लोए, निमित्ता जं बलं भवे ॥ ८१ ॥ एसो बलाबलविही समासओ किन्तिओ सुविहिएहिं । अणुओगनाणगज्झो नायव्वो अप्पमतेहिं ॥। ८२ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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