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अनुयोगद्वार
३४॥ किया जा चुका है । उपोद्घात-निर्युक्त्यनुगम के निम्नोक्त २६ लक्षण हैं : १. उद्देश, २. निर्देश, ३. निर्गम, ४. क्षेत्र, ५. काल, ६. पुरुष, ७. कारण, ८. प्रत्यय, ९. लक्षण, १०. नय, ११. समवतार, १२. अनुमत, १३. किम् , १४.कतिविध, १५. कस्य, १६. कुत्र, १७. कस्मिन्, १८. कथम् , १९. कियच्चिर, २०. कति, २१. विरहकाल, २२. अविरहकाल, २३. भव, २४. आकर्ष, २५. स्पर्शन, २६. निरुक्ति ।' सूत्रस्पर्शिक-निर्युक्त्यनुगम का अर्थ है अस्खलित, अमीलित, अन्य सूत्रों के पाठों से असंयुक्त, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्णघोषयुक्त, कंठ और ओष्ठ से विप्रमुक्त तथा गुरुमुख से ग्रहण किये हुए उच्चारण से युक्त सूत्रों के पदों का स्वसिद्धान्तानुरूप व्याख्यान । नयद्वार:
नय नामक चतुर्थ अनुयोगद्वार में नैगमादि सात मूलनयों का स्वरूप बताया गया है : सत्त मूलणया पण्णत्ता, तं जहा-णेगमे, संगहे, ववहारे, उज्जुसुए, सहे, समभिरूढे, एवंभूए- ये सात नय जैनदर्शन में सुप्रसिद्ध हैं। नयद्वार के व्याख्यान के साथ चारों प्रकार के अनुयोगद्वार का व्याख्यान पूर्ण होता है।
__ अनुयोगद्वार सूत्र के इस परिचय से स्पष्ट है कि कतिपय महत्त्वपूर्ण जैन 'पारिभाषिक शब्दों एवं सिद्धान्तों की संक्षिप्त व सूत्ररूप व्याख्या करने वाले प्रस्तुत ग्रंथ का जैन आगमों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। निक्षेपशैली की प्रधानता एवं भेदप्रभेद की प्रचुरता के कारण ग्रंथ में कुछ क्लिष्टता अवश्य आगई है जो स्वाभाविक है।
१. आवश्यक-नियुक्ति (गा० १४०-१४१) में इस पर विशेष प्रकाश डाला गया है। २. सू. . (अनुगमाधिकार ).
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