SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, नयुतांग, नयुत, चुलितांग, चुलित, शीर्षप्रहेलिकांग और शीर्षप्रहेलिका बनता है। यहाँ तक गणित का विषय है। इससे आगे उपमा की विवेचना है । उपमा दो प्रकार की है : पल्योपम और सागरोपम । पल्योपम के तीन भेद हैं : उद्धारपल्योपम, अद्धापल्योपम और क्षेत्रपल्योपम । इनमें से प्रत्येक के दो भेद हैं : सूक्ष्म और व्यावहारिक । इन भेद-प्रभेदों का सूत्रकार ने सदृष्टान्त विस्तारपूर्वक व्याख्यान किया है एवं नारकियों, देवों, स्थावरों, विकलेन्द्रियों, तिर्यंच पंचेन्द्रियों, खेचरों, मनुष्यों, व्यंतरों, ज्योतिष्कों एवं वैमानिकों की जघन्य तथा उत्कृष्ट स्थिति-आयु पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला है । इसी प्रकार सागरोपम का भी उदाहरणसहित वर्णन किया है। यह वर्णन विशेष रोचक है। भावप्रमाण : भावप्रमाण तीन प्रकार का है : गुणप्रमाण, नयप्रमाग और संख्याप्रमाण । गुणप्रमाण के दो भेद हैं : जीवगुणप्रमाण और अजीवगुणप्रमाण । अजीवगुणप्रमाण पाँच प्रकार का है : वर्णगुणप्रमाण, गंधगुणप्रमाण, रसगुणप्रमाण, स्पर्शगुणप्रमाण और संस्थानगुणप्रमाण । इनके पुनः क्रमशः पाँच, दो, पाँच, आठ और पाँच भेद हैं। ____ जीवगुणप्रमाण तीन प्रकार का है : ज्ञानगुणप्रमाण, दर्शनगुणप्रमाण और चारित्रगुणप्रमाण । इनमें से ज्ञानगुणप्रमाण के चार भेद हैं : प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और आगम। प्रत्यक्ष: प्रत्यक्ष दो प्रकार का है : इन्द्रियप्रत्यक्ष और नोइन्द्रियप्रत्यक्ष । इन्द्रिय प्रत्यक्ष पाँच प्रकार का है : श्रोत्रेन्द्रियप्रत्यक्ष, चक्षुरिन्द्रियप्रत्यक्ष, घ्राणेन्द्रियप्रत्यक्ष, जिह्वेन्द्रियप्रत्यक्ष और स्पर्शेन्द्रियप्रत्यक्ष । नोइन्द्रियप्रत्यक्ष के तीन भेद हैं : अवधिज्ञानप्रत्यक्ष, मनःपर्ययज्ञानप्रत्यक्ष और केवलज्ञानप्रत्यक्ष ।' १. सू. २४-६. २. सू. २७-४४. ३. भावप्रमाण का अर्थ है वस्तु का यथावस्थित ज्ञान । ४. सू. ६४-५. ५. सू. ६६. ६. इन ज्ञानों के स्वरूप-वर्णन के लिए नन्दी सूत्र देखना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy