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________________ नन्दी ३२१ अथवा जिस तीर्थंकर के जितने शिष्य औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा और पारिणामिकी-इन चार प्रकार की बुद्धियों से युक्त होते हैं उस तीर्थकर के उतने ही सहस्त्र प्रकीर्णक होते हैं और प्रत्येक बुद्ध भी उतने ही होते हैं। यहाँ तक अंगबाह्य-अनंगप्रविष्ट श्रुत का अधिकार है। __अंगप्रविष्ट श्रुत बारह प्रकार का है। इसे द्वादशांग भी कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में प्रत्येक अंग का. क्रमशः परिचय दिया गया है। अंतिम अंग दृष्टिवाद (जो कि इस समय अनुपलब्ध है) को सर्वभावप्ररूपक बताया है । दृष्टिवाद संक्षेप में पाँच प्रकार का है : १. परिकर्म, २. सूत्र, ३. पूर्वगत, ४. अनुयोग, ५. चूलिका । इनमें से परिकर्म के सात भेद हैं : १. सिद्धश्रेणिकापरिकर्म, २. मनुष्यश्रेणिकापरिकर्म, ३. पृष्टश्रेणिका परिकर्म, ४. अवगाढश्रेणिकापरिकर्म, ५. उपसम्पादनश्रेणिकापरिकर्म, ६. विप्रजहत्श्रेणिकापरिकर्म, ७. च्युताच्युतश्रेणिकापरिकर्म । इनके अनेक भेद-प्रभेद हैं। सूत्र बाईस प्रकार के हैं : १. ऋजुसूत्र, २. परिणतापरिणत, ३. बहुभंगिक, ४. विजयचरित, ५. अनन्तर, ६. परम्पर, ७. आसान, ८. संयूथ, ९. संभिन्न, १०. यथावाद, ११. स्वस्तिकावत, १२. नन्दावर्त, १३. बहुल, १४. पृष्टापृष्ट, १५. व्यावर्त, १६. एवम्भूत, १७. द्विकावर्त, १८. वर्तमानपद, १९. समभिरूढ, २०. सर्वतोभद्र, २१. प्रशिष्य, २२. दुष्प्रतिग्रह । पूर्वगत चौदह प्रकार का है : १. उत्पादपूर्व, २. अग्रायणीय, ३. वीर्यप्रवाद, ४. अस्तिनास्तिप्रवाद, ५. ज्ञानप्रवाद, ६. सत्यप्रवाद, ७. आत्मप्रवाद, ८. कर्मप्रवाद, ९. प्रत्याख्यानप्रवाद, १०. विद्यानुप्रवाद, ११. अवन्ध्य, १२. प्राणायु, १३. क्रियाविशाल, १४, लोकबिन्दुसार । अनुयोग दो प्रकार का है : मूलप्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग । मूलप्रथमानुयोग में तीर्थकरों के पूर्वभव, जन्म, अभिषेक आदि का विशद वर्णन है। गण्डिकानुयोग में कुलकर-गण्डिका, तीर्थकर-गण्डिका, चक्रवर्ति-गण्डिका आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है। चूलिकाएं क्या हैं ? आदि के चार पूर्वो की चलिकाएं हैं, शेष पूर्व बिना चूलिका के हैं। उपर्युक्त विषय के विशेष स्पष्टीकरण के लिए नन्दी सूत्र का व्याख्यात्मक साहित्य-चूर्णि, हारिभद्रीय वृत्ति, मलयगिरिकृत टीका आदि देखना चाहिए । १. सू. ४३. चूलिका में कुछ अनुक्त विषयों का प्रतिपादन किया जाता है : उक्तशेषा नुवादिनी चूला। ३. सू. ४४-५६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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