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भोपपातिक लिच्छवी-पुत्र तथा अनेक मांडलिक राजा, युवराज, तलवर ( कोतवाल ), सीमाप्रान्त के अधिपति, परिवार के स्वामी, इभ्य (धनपति), श्रेष्ठी, सेनापति और सार्थवाह आदि-कोई वन्दन के लिए, कोई पूजन के लिए, कोई दर्शन के लिए, कोई कौतूहल शान्त करने के लिए, कोई अर्थनिर्णय करने के लिए, कोई अश्रत बात को सुनने के लिए, कोई श्रुत बात का निश्चय करने के लिए तथा कोई अर्थ. हेतु और कारणों को जानने के लिए-पूर्णभद्र चैत्य की ओर रवाना हए । किसी ने कहा, हम मुण्डित होकर श्रमण-प्रव्रज्या लेंगे, किसी ने कहा, हम पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रतों का पालन कर गृहिधर्म धारण करेंगे। तत्पश्चात् नगरवासी स्नानादि कर, अपने शरीर को चन्दन से चर्चित कर, सुन्दर वस्त्र और माला पहन, मणि, सुवर्ण तथा हार, अर्धहार, तिसरय (तीन लड़ी का हार ), पालंब (गले का आभूषण ) और कटिसूत्र आदि आभूषण धारण कर महावीर के दर्शन के लिए चल पड़े। कोई घोड़े, कोई हाथी, कोई रथ तथा कोई पालकी में सवार होकर, और कोई पैदल चलकर पूर्णभद्र चैत्य में पहुँचे । श्रमणभगवान् महावीर को दूर से देखकर नगरवासी अपने-अपने यानों और वाहनों से उतरे और फिर तीन बार प्रदक्षिणा कर, विनय से हाथ जोड़ उनकी उपासना में संलग्न हो गये (२७)।
वार्तानिवेदक से महावीर के आगमन का समाचार पाकर राजा कूणिक अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने तुरत ही अपने सेनापति को आदेश दिया-"हे देवानुप्रिय ! शीघ्र ही हस्तिरत्न को सजित करो, चातुरंगिणी सेना को तैयार करो और सुभद्रा आदि रानियों के लिए अलग-अलग यानों को सजाओ। नगरी के गली-मोहल्लों को साफ करके उनमें जल का छिड़काव करो, नगरी को मञ्चों से विभूषित करो, जगह-जगह ध्वजा और पताकाएँ फहरा दो तथा गोशीर्ष और रक्तचन्दन के थापे लगवाकर सब जगह गन्धगुटिका आदि धूप महका दो" ( २८-२९)।
मल्लकी और लिच्छवी राजा मौजूद थे और उन्होंने इस अवसर पर सर्वत्र
दीपक जलाकर उत्सव मनाया था ( कल्पसूत्र १२८)। १. पाँच अणुव्रत-स्थूल प्राणातिपातविरमण, स्थूल मृषावादविरमण, स्थूल
अदत्तादानविरमण, स्वदारसंतोष, इच्छापरिमाण । सात शिक्षाव्रत--
अनर्थदण्डविरमण, दिग्वत, उपभोगपरिभोगपरिमाण, सामायिक, देशाव.. काशिक, प्रोषधोपवास, अतिथिसंविभाग।
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