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नन्दी का परिचय समवायांग सूत्र में भी दिया गया है किन्तु वह नन्दी सूत्र से कुछ भिन्न है। इसी प्रकार अन्यत्र भी कुछ बातों में नन्दी सूत्र से भिन्नता एवं विशेषता दृष्टिगोचर होती है। मंगलाचरण:
सर्वप्रथम सूत्रकार ने भगवान् अर्हन् महावीर को नमस्कार किया है। तदनन्तर जैनसंघ, चौबीस जिन, ग्यारह गणधर, जिन प्रवचन तथा सुधर्म आदि स्थविरों को स्तुतिपूर्वक प्रणाम किया है। प्रारम्भ की कुछ मंगलगाथाएँ इस प्रकार हैं:
जयइ जगजीवजोणीवियाणओ जगगुरू जगाणंदो। जगणाहो जगबंधू , जयइ जगप्पियामहो भयवं ॥१॥ जयइ सुआणं पभवो, तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ । जयइ गुरू लोगाणं, जयइ महप्पा महावीरो ॥२॥ भदं सव्वजगुज्जोयगस्स, भदं जिणस्स वीरस्स । भई सुरासुरनमंसियस्स, भदं धूयरयस्स ॥३॥ गुणभवणगहणसुयरयणभरियदसणविसुद्धरत्थागा । संघनगर भदं ते, अखंडचारित्तपागारा॥४॥ संजमतवतुंबारयस्स, नमो सम्मत्तपारियल्लस्स।
अप्पडिचक्कस्स जओ, होउ सया संघचक्कस्स ॥५॥ मंगल के प्रसंग से प्रस्तुत सूत्र में आचार्य ने जो स्थविरावली-गुरु-शिष्यपरम्परा दी है वह कल्पसूत्रीय स्थविरावली से भिन्न है। नन्दी सूत्र में भगवान् महावीर के बाद की स्थविरावली इस प्रकार है :१. सुधर्म १२. स्वाति
२२. नागहस्ती २. जम्बू
१३. श्यामार्य २३. रेवतीनक्षत्र ३. प्रभव
१४. शाण्डिल्य २४. ब्रह्मद्वीपकसिंह ४. शय्यम्भव १५. समुद्र
२५. स्कन्दिलाचार्य ५. यशोभद्र १६. मंगु
२६. हिमवन्त ६. सम्भूतविजय १७. धर्म
२७. नागार्जुन ७. भद्रबाहु १८. भद्रगुप्त
२८. श्रीगोविन्द ८. स्थूलभद्र १९. वज्र
२९. भूतदिन ९. महागिरि २०. रक्षित
३०. लौहित्य १०. सुहस्ती २१. नन्दिल (आनन्दिल) ३१. दूष्यगणी ११. बलिस्सह
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