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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास हरिभद्रकृत उद्धार
तृतीय अध्ययन में इस बात का उल्लेख है कि दीमक के खा माने पर हरिभद्र सूरि ने प्रस्तुत ग्रंथ का उद्धार व संशोधन किया तथा सिद्धसेन, वृद्धवादी, यक्षसेन, देवगुप्त, यशोवर्द्धन, रविगुप्त, नेमिचन्द्र, जिनदासगणी आदि आचार्यों ने इसे मान्य किया।
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