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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यान, वाहन, सोना, चाँदी, दासी, कोष, कोष्ठागार और आयुधागार का अधिपति था (६)।
राजा कूणिक की रानी धारिणी' लक्षण और व्यंजनयुक्त, सर्वांगसुन्दरी और संलाप आदि में कुशल थी। राजा और रानी काम भोगों का सेवन करते हुए सुखपूर्वक समय यापन करते थे (७)।
एक दिन राजा कूणिक अनेक गणनायक, दण्डनायक, मांडलिक राजा, युवराज, तलवर (नगररक्षक), मांडलिक ( सीमाप्रान्त का राजा), कौटुंबिक (परिवार का मुखिया), मन्त्री, महामन्त्री, ज्योतिषी, द्वारपाल, अमात्य, अंगरक्षक, पीठमर्द ( राजा का वयस्य ), नगरवासी, व्यापारी, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत और संधिरक्षकों के साथ उपस्थानशाला ( सभास्थान) में बैठा हुआ था। इस समय निर्ग्रन्थ-प्रवचन के शास्ता श्रमणभगवान् महावीर अनेक श्रमणों से परिवेष्टित ग्रामानुग्राम विहार करते हुए चम्पा नगरी के पास आ पहुँचे (९-१०)।
राजा कृणिक के वार्तानिवेदक को ज्योंही महावीर के आगमन का पता लगा, वह प्रसन्नचित्त हो अपने घर आया। उसने स्नान किया, देवताओं को बलि दी तथा कौतुक (तिलक आदि लगाना) और मंगल करने के पश्चात् शुद्ध वस्त्राभूषण धारण कर कूणिक राजा के दरबार में पहुँचा। हाथ जोड़कर राजा को बधाई देते हुए उसने निवेदन किया : “हे देवानुप्रिय ! जिनके दर्शन की आप सदैव इच्छा और अभिलाषा करते हैं और जिनके नामगोत्र के श्रवणमात्र से लोग
इसलिए उसने भम्भा ही ली। तब से श्रेणिक भम्भसार नाम से कहा जाने लगा (मावश्यकचूर्णि २, पृ० १५८)। कूणिक (अजातशत्रु) राजा श्रेणिककी रानी चेलना से उत्पन्न हुआ था। कूणिक को अशोकचन्द्र, वजिविदेहपुत्र अथवा विदेहपुत्र नाम से भी कहा गया है। विशेष के लिए देखिये--जगदीशचन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय
समाज, पृ० ५०८-५१२. १. धारिणी राजा कूणिक की प्रमुख रानी थी। उववाइय (३३, पृ० १४४)
के टीकाकार अभयदेव ने सुभद्रा धारिणी का ही नामान्तर बताया है। (निरयावलिया १ में) पद्मावती कूणिक राजा की दूसरी रानी थी जिसने उदायी को जन्म दिया था।
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