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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सौंपे बिना एक गाँव से दूसरे गाँव चले जाना-विहार कर जाना, बिखरे हुए सामान को ठीक किये बिना विहार कर जाना, बिना प्रतिलेखना के उपधिउपकरण रखना। तीसरा उद्देश : तृतीय उद्देश में भी मास-लघु प्रायश्चित्त से सम्बन्धित क्रियाओं का उल्लेख है। वे क्रियाएँ निम्नलिखित हैं: धर्मशाला (आगंतार), आरामगृह ( आरामागार-बगीचे में बनाया हुआ घर ), गृहपतिकुल (घर के मालिक का कुल) तथा अन्यतीर्थिकगृह में जाकर अशनादि की याचना करना, मना कर देने पर भी किसी के घर में आहारादि के निमित्त प्रवेश करना, भोज आदि होता हुआ देख कर वहाँ जाकर आहारादि ग्रहण करना, तीन घरों-तीन दरवाजों को पार कर लाये हुए आहारादि को स्वीकार करना, पांवों को (शोभा के लिए) झाड़-पोंछ कर साफ करना, पांवों को दबाना, पैरों में तैल आदि लगाना, पैरों को ठंडे अथवा गर्म (अचित्त) पानी से धोना, पैरों में रंग अथवा रस लगाना, यावत् सारे शरीर को साफ करनादबाना-धोना आदि, गण्ड आदि रोग होने पर उसे तीक्ष्ण शस्त्र से छिदवानाकटवाना एवं शोणित आदि निकलवा कर विशुद्ध करना अथवा अपने ही हाथ से छेद-काट कर विशुद्ध करना, आलेपन ( मलहम) आदि का लेप करना-करवाना, गुदे अथवा कुक्षि में उत्पन्न कृमियों को अंगुली से निकालना, लंबे नाखुनों को काटना, गुह्य स्थान के लंबे बालों को काटना, आँखों के लंबे बालों को काटना, जंघा के लंबे बालों को काटना, कुक्षि के लंबे बालों को काटना, दाढ़ी-मूछों के लम्बे बालों (दीहाई मंसुरोमाइं) को काटना, सिर के लंबे बालों को काटना, नाक के लंबे बालों को काटना ( ये सब क्रियाएँ शोभा के लिए नहीं की जानी चाहिए ), दाँतों को घिसना, दाँतों को टंडे अथवा गर्म (अचित्त ) पानी से धोना, दाँतों में रंग आदि लगाना, आँखें मसल-मसल कर साफ-सुथरी करना, पाँव आदि रगड़-रगड़ कर साफ-सुथरे करना, आँख आदि के मैल को निकालना, शरीर का स्वेद-पसीना साफ करना, सन आदि का धागा वशीकरण के लिए बटना, घर में, घर के द्वार पर, घर के सामने, घर के आंगन में टट्टी-पेशाब (उच्चारं वा पासवणं वा) फेंकना, किसी सार्वजनिक स्थान पर लोगों के आने-जाने की जगह पर टट्टी-पेशाब फेंकना, कीचड़, फूलन (पंकसि वा पणगंसि वा) आदि की जगह टट्टी-पेशाब फेंकना, इक्षुवन ( ईख का खेत ), शालिवन, कुसुमवन, कापासवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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