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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास साधु-साध्वियों को रहना अकल्प्य है। जहाँ पिण्ड आदि एक ओर रखे हुए हों वहाँ हेमन्त व ग्रीष्मऋतु में रहने में कोई हर्ज नहीं एवं जहाँ ये कोष्ठागार आदि में सुव्यवस्थित रूप में रखे हुए हों वहाँ वर्षाऋतु में रहने में भी कोई बाधा नहीं । निर्ग्रन्थियों को आगमनगृह (पथिक आदि के आगमन के हेतु बने हुए), विकृतगृह (अनावृत गृह ), वंशीमूल, वृक्षमूल अथवा अभ्रावकाश (आकाश) में रहना अकल्प्य है। निर्ग्रन्थ आगमनगृह आदि में रह सकते हैं। ___आगे के सूत्रों में बताया गया है कि एक अथवा अनेक सागारिकों-वसतिखामियों-उपाश्रय के मालिकों के यहाँ से साधु-साच्चियों को आहारादि नहीं लेना चाहिए। यदि अनेक सागारिकों में से किसी एक को खास सागारिक के रूप में प्रतिष्ठित किया हुआ हो तो उसे छोड़ कर शेष के यहाँ से आहारादि लिया जा सकता है। घर से बाहर निकाला हुआ एवं अन्य किसी के आहार के साथ मिलाया हुआ अथवा न मिलाया हुआ सागारिक के घर का आहार अर्थात् बहिरनिष्क्रामित (बहिरनिहत) संसृष्ट अथवा असंसृष्ट सागारिकपिण्ड साधु-साध्वियों के लिए अकल्प्य है। हाँ, घर से बाहर निकाला हुआ एवं अन्य किसी के पिण्ड के साथ मिलाया हुआ सागारिकपिण्ड उनके लिए कल्प्य है । जो निम्रन्थ-निर्ग्रन्थी घर से बाहर निकाले हए सागारिक के असंसृष्ट पिण्ड को संसृष्ट पिण्ड करते हैं अथवा उसके लिए सम्मति प्रदान करते हैं वे चतुर्गुरु प्रायश्चित्त के भागी होते हैं।'
किसी के यहाँ से सागारिक के लिए आहारादि आया हुआ हो एवं सागारिक ने उसे स्वीकार कर लिया हो तो वह साधु-साध्वियों के लिए अकल्प्य है। यदि सागारिक उसे अस्वीकार कर देता है तो वह पिण्ड साधु-साध्वियों के लिए कल्प्य है। सागारिक की निईतिका (दूसरे के यहाँ भेजी हुई सामग्री) दूसरे ने स्वीकार न की हो तो वह निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के लिए अकल्प्य है किन्तु यदि उसने स्वीकार कर ली है तो वह कल्प्य है ।'
सागारिक का अंश अर्थात् हिस्सा अलग न किया हो तो दूसरे का अंशिकापिण्ड भी श्रमण-श्रमणियों के लिए अकल्प्य है । सागारिक का अंश अलग करने पर ही दूसरे का अंश ग्रहणीय होता है ।
सागारिक के कलाचार्य आदि पूज्य पुरुषों के लिए तैयार किया हुआ प्रातिहारिक अर्थात् वापिस लौटाने योग्य अशनादि सागारिक स्वयं अथवा उसके
१. उ. २, सू० १३-६. २. उ० २, सू० १७-८. ३. उ० २, सू० १९.
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