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प्रथम प्रकरण
औपपातिक
वैदिक ग्रन्थों में पुराण, न्याय, मीमांसा और धर्मशास्त्र को उपांग कहा गया है। वेदों के भी अंग और उपांग होते हैं; यथा-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरुक्त और ज्योतिष-ये छः अंग हैं, तथा इनके व्याख्या-ग्रन्थ उपांग हैं। उपांगों और अंगों का सम्बन्ध :
बारह अंगों की भाँति बारह उपांगों का उल्लेख प्राचीन आगम ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं होता। केवल निरयावलिया के प्रारम्भ में निरयावलिया आदि पाँच आगमों की उपाङ्ग संज्ञा दी है ।२ समवायांगसूत्र में बारह वस्तुओं की गणना करते हुए द्वादश अंगों का वर्णन किया गया है, लेकिन वहाँ द्वादश उपांगों का नामोल्लेख तक नहीं। नन्दिसूत्र में भी कालिक और उत्कालिक रूप में ही उपांगों का उल्लेख है, द्वादश उपांग के रूप में नहीं। यह प्रश्न विचारणीय है कि द्वादश उपांग सम्बन्धी उल्लेख १२ वीं शताब्दी से पूर्व के ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं होता।
१. चत्वारश्च वेदाः सामवेद-ऋग्वेद-यजुर्वेद-अथर्वणवेदलक्षणाः सांगोपांगाः;
तत्रांगानि शिक्षा-कल्प-व्याकरण-च्छन्दो-निरुक्त-ज्योतिष्कायनलक्षणानि षट् ; उपांगानि तव्याख्यानरूपाणि तैः सह वर्तन्ते इति सांगोपांगाः-अनुयोग
द्वारवृत्ति, हेमचन्द्रसूरि, पृ० ३६ अ । २. निरयावलिया, पृ० ३-४.
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