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________________ प्रथम प्रकरण दशाश्रूतस्कन्ध . vvvvvvvvvvvv Vvvvvvv दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, व्यवहार, निशीथ, महानिशीथ और पंचकल्प (अनुपलब्ध ) अथवा जीतकल्प छेदसूत्र के नाम से प्रसिद्ध हैं। सम्भवतः छेद नामक प्रायश्चित्त को दृष्टि में रखते हुए इन सूत्रों को छेदसूत्र कहा जाता है। वर्तमान में उपलब्ध उपर्युक्त छः छेदसूत्रों में छेद के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रकार के प्रायश्चित्तों एवं विषयों का वर्णन दृष्टिगोचर होता है जिसे ध्यान में रखते हुए यह कहना कठिन है कि छेदसूत्र शब्द का संबंध छेद नामक प्रायश्चित्त से है अथवा और किसी से। इन सूत्रों का रचना-क्रम भी वही प्रतीत होता है जिस क्रम से ऊपर इनका नाम-निर्देश किया गया है। दशाश्रुतस्कन्ध, महानिशीथ और जीतकल्प को छोड़कर शेष तीन सूत्रों के विषय-वर्णन में कोई सुनिश्चित योजना दृष्टिगोचर नहीं होती। हाँ, कोई-कोई उद्देश-अध्ययन इस वक्तव्य का अपवाद अवश्य है। सामान्यतः श्रमण-जीवन से सम्बन्धित किसी भी विषय का किसी भी उद्देश में समावेश कर दिया गया है। निशीथ सूत्र में विभिन्न प्रायश्चित्तों की दृष्टि से उद्देशों का विभाजन अवश्य किया गया है किन्तु तत्सम्बन्धी दोषों के विभाजन में कोई निश्चित योजना नहीं दिखाई देती। छेदसूत्रों का महत्त्व : छेदसूत्रों में जैन साधुओं के आचार से संबंधित प्रत्येक विषय का पर्याप्त विवेचन किया गया है। इस विवेचन को हम चार वर्गों में विभक्त कर सकते हैं- उत्सर्ग, अपवाद, दोष और प्रायश्चित्त । उत्सर्ग का अर्थ है किसी विषय का सामान्य विधान । अपवाद का अर्थ है परिस्थितिविशेष की दृष्टि से विशेष विधान अथवा छूट । दोष का अर्थ है उत्सर्ग अथवा अपवाद का भंग । प्रायश्चित्त का अर्थ है व्रतभंग के लिए समुचित दण्ड । किसी भी विधान अथवा व्यवस्था के लिए ये चार बातें आवश्यक होती हैं। सर्वप्रथम किसी सामान्य नियम का निर्माण किया जाता है। तदनन्तर उपयोगिता, देश, काल, शक्ति आदि को दृष्टि में रखते हुए थोड़ी-बहुत छूट दी जाती है। इस प्रकार की छूट न देने पर नियमपालन प्रायः असंभव हो जाता है। परिस्थितिविशेष के लिए अपवाद-व्यवस्था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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