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________________ उत्तराध्ययन हे भद्रे ! हे सुरूपे ! हे मंजुभाषिणि ! मैं रथनेमि हूँ, तू मुझसे मत डर । मुझसे तुझे लेशमात्र भी कष्ट न पहुँचेगा। मनुष्य-भव दुर्लभ है, आओ हम दोनों भोगों का उपभोग करें। भुक्तभोगी होने के बाद हम जिनमार्ग का सेवन करेंगे। संयम में कायर बने हुए रथनेमि की यह दशा देख अपने कुल-शील की रक्षा करती हुई सुस्थित भाव से राजीमती ने उत्तर दिया-हे रथनेमि ! यदि रूप में तू वैश्रवण, विलासयुक्त चेष्टा में नलकूबर' अथवा साक्षात् इन्द्र ही बन जाय तो भी मैं तेरी इच्छा न करूँगी। हे कामभोग के अभिलाषी! तेरे यश को धिक्कार है। तू वमन की हुई वस्तु का पुनः उपभोग करना चाहता है, इससे तो मर जाना अच्छा है। मैं भोगराज ( उम्रसेन ) के कुल में पैदा हुई हूँ और तू अंधकवृष्णि के कुल में पैदा हुआ है। फिर हम अपने कुल में गंधनसर्प क्यों बने, इसलिए तू निश्चल भाव से संयम का पालन कर । जिस किसी भी नारी को देखकर यदि तू उसके प्रति आसक्तिभाव प्रदर्शित करेगा तो वायु के झोंके से इधर-उधर डोलने वाले तृण की भाँति अस्थिर चित्त हो जायेगा। - राजीमती के वचन सुन जैसे हाथी अंकुश से वश में हो जाता है वैसे ही रथनेमि भी धर्म में स्थिर हो गये। फिर दोनों ने केवलज्ञान प्राप्त कर समस्त कर्मों का क्षय कर सिद्धगति पाई (१-४८)। १. नलकुब्बरसमाणा वैश्रमणपुत्रतुल्याः। इदं च लोकरूड्या व्याख्यातं यतो देवानां पुत्राः न सन्ति-अन्तगड-टीका, पृ० ८९. २. तुलना कीजिए-दशवकालिक (२. ७ आदि) से। तथा धिरत्थु तं विसं वन्तं, यमहं जीवितकारणा । - वन्तं पच्चावमिस्सामि मतम्मे जीविता वरं ॥ - --विसवन्त जातक. ३. अंधकवृष्णि सोरियपुर में राज्य करता था। उसके समुद्रविजय, वसुदेव आदि पुत्र और कुन्ती और माद्री पुत्रियाँ थीं। समुद्र विजय के दो पुत्र थे-अरिष्टनेमि और रथनेमि। वसुदेव के वासुदेव, बलदेव, जराकुमार आदि अनेक पुत्र थे। यदुकुल के वंशवृक्ष के लिए देखिए-जगदीशचन्द्र .. जैन, लाइफ इन ऐंशियेंट इंडिया, पृ० ३७७. ४. गन्धन सर्प मंत्रादि से आकृष्ट होकर अपने विष का पान कर लेते हैं, जबकि अगंधन सर्प किसी भी हालत में ऐसा नहीं करते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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