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उत्तराध्ययन
१.४७
उत्तराध्ययन सूत्र के भाषा और विषय की दृष्टि से प्राचीन होने की विस्तृत चर्चा शान्टियर, जेकोबी और विन्टरनित्स आदि विद्वानों ने की है। इस ग्रन्थ के अनेक स्थानों की तुलना बौद्धों के सुत्तनिपात, जातक, और धम्मपद आदि प्राचीन ग्रन्थों से की जा सकती है। उदाहरण के लिए, राजा नमि को बौद्ध ग्रन्थों में प्रत्येकबुद्ध मानकर उसकी कठोर तपस्या का वर्णन किया गया है। हरिकेश मुनि की कथा प्रकारान्तर से मातंग जातक में कही गई है। इसी प्रकार चित्तसम्भूत कथा की तुलना चित्तसम्भूत जातक की कथा से, और इषुकार कथा की तुलना हत्थिपाल जातक में वर्णित कथा से की जा सकती है। उत्तराध्ययन सूत्र में वर्णित चार प्रत्येकबुद्धों की कथा कुम्भकार जातक में कही गई है। मृगापुत्र की कथा भी बौद्ध साहित्य में आती है। इस ग्रन्थ के अनेक सुभाषित और संवादों के पढ़ने से प्राचीन बौद्ध सूत्रों की याद आ जाती है। विनय:
जो गुरु की आज्ञा का पालन करने वाला हो, गुरु के समीप रहता हो, गुरु के इंगित और मनोभाव को जानता हो उसे विनीत कहते हैं (२)। साधु को विनयी होना चाहिए क्योंकि विनय से शील की प्राप्ति होती है। 'विनयी साधु को अपने गच्छ और गण आदि द्वारा अपमानित नहीं होना पड़ता (७)। जैसे मरियल घोड़े को बार-बार कोड़े लगाने की जरूरत होती है, वैसे मुमुक्षु को बार-बार गुरु के उपदेश की अपेक्षा न करनी चाहिए । जैसे अच्छी नस्ल का घोड़ा चाबुक देखते ही ठीक रास्ते पर चलने लगता है, उसी प्रकार गुरु के आशय को समझ मुमुक्षु को पापकर्म का त्याग कर देना चाहिए (१२)। अपनी आत्मा का दमन करना चाहिए, क्योंकि आत्मा को ही बड़ी कठिनता से वश में किया जा सकता है। जिसने अपनी आत्मा को वश में कर लिया वह इस लोक और परलोक दोनों में सुखी होता है (१५)। वाणी अथवा कर्म से प्रकट रूप में अथवा गुप्त रूप से गुरुजनों के विरुद्ध किसी प्रकार की चेष्टा न करनी चाहिए (१७)। लुहारों की शालाओं में, घरों में, दो घरों के बीच की जगह में और बड़े रास्तों पर कभी किसी स्त्री के साथ खड़ा न हो और
१. देखिए-विन्टरनित्स, हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग २, पृ०
४६७-८. २. तुलना--अत्ता हि अत्तनो नाथो को हि नाथो परो सिया।
अत्तना हि सुदन्तेन नाथं लभति दुल्लभं ॥ धम्मपद १२.१..
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