SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति वह वैताढ्य पर्वत की ओर लौट गया ( ६३ ) । यहाँ पहुँच कर भरत ने नमि और विनमि नामक विद्याधर राजाओं को सिद्ध किया । विनमि ने भरत चक्रवर्ती को स्त्रीरत्न और नमि ने रत्न, कटक और बाहुबंद भेंट में दिये ( ६४ ) । तत्पश्चात् भरत ने गंगादेवी की सिद्धि की खंडप्रपातगुफा में पहुँच नृत मालक देवता को सिद्ध किया और गंगा के पूर्व में स्थित निष्कुट प्रदेश को जीता । सुषेण सेनापति ने खंडगप्रपातगुफा के कपाटों का उद्घाटन किया । यहाँ भी भरत ने काकणिरत्न से मंडल बनाये ( ६५ ) । १२३. इसके बाद भरत ने गंगा के पश्चिम तट पर विजय स्कंधावार निवेश स्थापित कर निधिरत्न' की सिद्धि की । इस समय चक्ररत्न अपनी यात्रा समाप्त कर विनीता राजधानी की ओर लौट पड़ा । भरत चक्रवर्ती भी दिग्विजय करने के पश्चात् हस्तिरत्न पर सवार हो उसके पीछे-पीछे चला । हाथी के आगे आठ मंगल पूर्णकलश, भृङ्गार, छत्र, पताका और दंड आदि स्थापित किये गये । फिर चक्र - रत्न, छत्ररत्न, चर्मरत्न, दंडरत्न, असिरत्न, मणिरत्न, काकणिरत्न और फिर नव निधियाँ रखी गई । उसके बाद अनेक राजा, सेनापतिरत्न, गृहपतिरत्न, वर्द्धकिरत्न, पुरोहितरत्न और स्त्रीरत्न चल रहे थे । फिर बत्तीस प्रकार के नाटकों के पात्र तथा सूपकार, अठारह श्रेणी प्रश्रेणी और उनके पीछे घोड़े, हाथी और अनेक पदाति चल रहे थे । तत्पश्चात् अनेक राजा, ईश्वर आदि थे और उनके पीछे असि यष्टि, कुंत आदि के वहन करनेवाले तथा दंडी, मुंडी, शिखंडी आदि हँसते, नाचते और गाते हुए चले जा रहे थे । भरत चक्रवर्ती के आगे-आगे बड़े अश्व, अश्वधारी, दोनों ओर हाथी, हाथी- सवार और पीछे-पीछे रथसमूह चल रहे थे । अनेक कामार्थी, भोगार्थी, लाभार्थी आदि भरत की स्तुति करते हुए जा रहे थे । अपने भवन में पहुँच कर भरत चक्रवर्ती ने सेनापतिरत्न, गृहपतिरत्न, वर्द्धकि रत्न और पुरोहितरत्न का सत्कार किया, सूपकारों, अठारह श्रेणी प्रश्रेणी तथा राजा आदि को सम्मानित किया तथा अनेक ऋतुकल्याणिकाओं, जनपदकल्याणिकाओं और विविध नाटकों से वेष्टित स्त्रीरत्न के साथ आनन्दपूर्वक जीवन यापन करने लगे (६७ ) । 1 एक दिन भरत ने अपने सेनापति आदि को बुलाकर महाराज्याभिषेक रचाने का आदेश दिया । अभिषेकमण्डप में अभिषेक आसन सजाया गया। इसके १. नैसर्प, पांडुक, पिंगलक, सर्वरत्न, महापद्म, काल, महाकाल, माणवक और शंख-ये नौ निधि कहलाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy