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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति कुलकरों ने मक्कार ( मत करो) दण्डनीति और ११ से १५ कुलकरों ने धिक्कार नाम की दण्डनीति का प्रचार किया' ( २८.२९)। नाभि कुलकर की मरुदेवी भार्या के गर्भ से ऋषभ का जन्म हुआ। ऋषभ कोशल के निवासी थे। वे प्रथम राजा, प्रथम जिन, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थकर और प्रथम धर्मवरचक्रवर्ती कहे जाते थे। उन्होंने पुरुषों की ७२ कलाओं, स्त्रियों की ६४ कलाओं तथा अनेक शिल्पों का उपदेश दिया। तत्पश्चात् उन्होंने अपने पुत्रों का राज्याभिषेक किया । फिर हिरण्य-सुवर्ण, धन-धान्य आदि को त्याग कर पालकी ( सवारी विशेष) से विनीता राजधानी के मध्य में होकर सिद्धार्थवन उद्यान में पहुँचे। वहाँ उन्होंने समस्त आभरण और अलंकार उतार दिये, केशों का लोंच किया और एक देवदूष्य को धारण कर श्रमणधर्म में दीक्षा ग्रहण की ( ३०)। ऋपभ एक वर्ष तक चीवरधारी रहे । उसके बाद उन्होंने वस्त्र का सर्वथा त्याग कर दिया । तपस्वी जीवन में उन्हें अनेक उपसर्ग सहन करने पड़े लेकिन वे सबको शान्त भाव से सहते गये। उन्होंने पाँच समिति और तीन गुप्ति का पालन किया, तथा वे शान्त, निरुपलेप और निरालंबन भाव से अप्रतिहत गति को प्राप्त हुए। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावसंबंधी समस्त प्रतिबंधों का उन्होंने त्याग कर १. याज्ञवल्क्यस्मृति (१-१३-३६७) में धिक्दंड और वाक्दंड का उल्लेख है । स्थानांग (३-७७ ) में सात प्रकार की दंडनीति बताई गई हैहक्कार, मक्कार, धिक्कार, परिभाषा, मंडलबंध, चारक, छविच्छेद । नृत्य, औचित्य, चित्र, वादित्र, मंत्र, तंत्र, ज्ञान, विज्ञान, दंभ, जलस्तंभ, गीतमान, तालमान, मेघवृष्टि, फलाकृष्टि, आरामरोपण, आकारगोपन, धर्मविचार, शकुनसार, क्रियाकल्प, संस्कृतजल्प, प्रासादनीति, धर्मरीति, वर्णिकावृद्धि, स्वर्गसिद्धि, सुरभितैलकरण, लीलासंचरण, हयगज-परीक्षण, पुरुषस्त्री-लक्षण, हेमरत्नभेद, अष्टादशलिपिपरिच्छेद, तत्कालबुद्धि, वास्तुसिद्धि, कामविक्रिया, वैद्यकक्रिया, कुंभनम, सारिश्रम, अंजनयोग, चूर्णयोग, हस्तलाघव, वचनपाटव, भोज्यविधि, वाणिज्यविधि, मुखमंडन, शालिखंडन, कथाकथन, पुष्पग्रन्थन, वक्रोक्ति, काव्यशक्ति, स्फारविधिवेष, सर्वभाषाविशेष, अभिधाज्ञान, भूषणपरिधान, भृत्योपचार, गृहाचार, व्याकरण, परनिराकरण, रंधन, केशबंधन, वीणानाद, वितंडावाद, अंकविचार, लोकव्यवहार, अंत्याक्षरिका, प्रश्नप्रहेलिका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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