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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
जम्बूद्वीप में हिमवान् ( हिमालय ) पर्वत के दक्षिण में भरत क्षेत्र ( भारतवर्ष ) है | यह अनेक स्थाणु, कंटक, विषम स्थान, दुर्गम स्थान, पर्वत, प्रपात, झरने, गर्त ( गड्ढे ), गुफाएँ, नदियाँ, तालाब, वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लताएँ, बल्लियाँ, अटवियाँ, श्वापद, तृण आदि से संपन्न है । इसमें अनेक तस्कर, पाखंडी, कृपण और वनीपक ( याचक ) रहते थे । यहाँ अनेक डिम्ब ( स्वदेश में होने . वाले विप्लव ) और डमर ( राज्योपद्रव ) होते थे, दुर्भिक्ष और दुष्काल पड़ते थे, तथा ईति ( मूषक आदि का धान्य को खा लेना ), मारी, रोग आदि नाना क्लेशों से यह क्षेत्र व्याप्त था । भरत क्षेत्र पूर्व-पश्चिम में फैला हुआ, उत्तर-दक्षिण में विस्तृत, उत्तर में पर्यक के समान और दक्षिण में धनुष के पृष्ठभाग के समान है । तीन ओर से यह लवणसमुद्र से घिरा है, तथा गंगा-सिंधु और वैताढ्य पर्वत के कारण इसके छः विभाग हो गये हैं । इसका विस्तार ५२६ योजन है ( १० ) । वैताढ्य पर्वत के दक्षिण में दक्षिणार्ध भारतवर्ष है जहाँ बहुत से मनुष्य रहते हैं ( ११ ) । वैताढ्य पर्वत के दोनों ओर दो पद्मबरवेदिकाएँ हैं ज़ो वनखंडों से वेष्टित हैं । इस पर्वत के पूर्व और पश्चिम में दो गुफाएँ हैंमिस्सगुहा और खंडप्पवायगुहा । इनमें दो देव रहते हैं । वैताढ्य पर्वत के दोनों ओर विद्याधर श्रेणियाँ हैं जहाँ विद्याधर निवास करते हैं । आभियोगश्रेणियों में अनेक देवी-देवता रहते हैं ( १२ ) । वैताढ्य पर्वत पर एक सिद्धायतन है। इसमें अनेक जिनप्रतिमाएँ विराजमान हैं (१३) । आगे दक्षिणार्ध भरतकूट का वर्णन ( १४ ), उत्तरार्ध भरत का वर्णन (१५-१६) एवं ऋषभकूट का वर्णन है ( १७ ) ।
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दूसरा वक्षस्कार :
काल दो प्रकार के होते हैं— अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी । अवसर्पिणी के छः भेद हैं- सुषमा- सुषमा, सुषमा, सुषमा- दुष्षमा, दुष्षमा- सुषमा, दुष्षमा, दुष्षमा- दुष्प्रमा। उत्सर्पिणी के भी छः भेद हैं- दुष्षमा- दुष्पमा, दुष्षमा, दुष्षमा- सुषमा, सुषमा- दुष्षमा, सुषमा, सुषमा- सुषमा । इसी प्रसंग में आगे बताया है
प्रश्न - मुहूर्त्त में कितने उच्छ्वास होते हैं ? उत्तर - असंख्यात समय = १ आवलि संख्यात आवलि = १ उच्च्वास
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