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________________ षष्ठ प्रकरण जम्बूहीपप्रज्ञप्ति जंबूद्दीवपन्नत्ति ( जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ) जैन आगमों का छठा उपांग है। इस पर मलयगिरि ने टीका लिखी थी लेकिन वह कालदोष से नष्ट हो गई। तत्पश्चात् बादशाह अकबर के गुरु हीरविजयसूर के शिष्य शान्तिचन्द्र वाचक ने अपने गुरु की आज्ञा से प्रमेयरत्नमंजूषा नाम की टीका लिखी। यह ग्रन्थ दो भागों में प्रकाशित हुआ है-पूर्वार्ध और उत्तरार्ध । पूवार्ध में चार और उत्तरार्ध में तीन वक्षस्कार हैं । तीसरे वक्षस्कार में भारतवर्ष और राजा भरत का वर्णन है। यह ग्रन्थ ज्ञाताधर्मकथा का उपांग माना जाता है। गौतम इन्द्रभूति और महावीर के प्रश्नोत्तर के रूप में इसकी व्याख्या की गई है। अनेक स्थानों पर त्रुटित होने के कारण उसकी पूर्ति जीवाजीवाभिगम आदि के पाठों से की गई है। पहला वक्षस्कार: मिथिला नगरी में राजा जितशत्रु राज्य करता था । धारिणी उसकी रानी । थी। एक बार नगरी के मणिभद्र नामक चैत्य में महावीर का समवसरण हुआ । उस समय उनके ज्येष्ठ शिष्य गौतम इन्द्रभूति ने जंबूद्वीप के विषय में प्रश्न किये जिनका उचित उत्तर महावीर ने दिय। (१-३)। जम्बूद्वीप में स्थित पद्मवर वेदिका एक वनखण्ड से घिरी है । वनखण्ड के बीच में अनेक पुष्करिणियां, वापिकाएँ, मंडप, गृह और पृथिवी शिलापट्टक हैं जहाँ अनेक व्यन्तर देव और देवियाँ क्रीडा करते हैं । जम्बूद्वीप के विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित नाम के चार द्वार हैं (४-८)। १. (अ) शान्तिचन्द्रविहित वृत्तिसहित-देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंड, बम्बई, सन् १९२०, धनपतसिंह, कलकत्ता, सन् १८८५. (आ) हिन्दी अनुवादसहित-अमोलकऋषि, हैदराबाद, वी० सं० २४४६. २. अत्र च कालदोषेण त्रुटितं सम्भाव्यते, तेनात्र स्थानाशून्यार्थ जीवाभिगमा. दिभ्यो लिख्यते, टीका-पृ० ११७ अ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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