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________________ सूर्यप्रज्ञप्ति व चन्द्रप्रज्ञप्ति सत्रहवें अध्याय में नक्षत्र-भोजन का वर्णन है अर्थात् कौनसे नक्षत्र में कौनसा भोजन लाभकारी होता है-यह बताया है। उदाहरण के लिए कृत्तिका नक्षत्र में दही, रोहिणी में चमस ( वसभ-वृषभ ?) का मांस, संस्थान में मृग का मांस, आर्द्रा में नवनीत, पुनर्वसु में घृत, पुष्य में दूध, आश्लेषा में द्वीपक का मांस, महानक्षत्र में कसोइ (एक खाद्य), पूर्वाफाल्गुनी में मेंढ़क का मांस, उत्तराफाल्गुनी में नखवाले पशुओं का मांस, हस्त में वत्थाणी (सिंघाड़ा), चित्रा में मूंग का सूप, स्वाति में फल, विशाखा में असित्तिया (?), अनुराधा में मिस्साकर, ज्येष्ठा में लहिअ ( ?), पूर्वाषाढ़ में आमलगशरीर, उत्तराषाढ़ में बल (बिल्ल–बेल ?) आभिजितू में पुष्प, श्रवण में खीर, शतभिषज में तुवर ( तुंबर- बड़ा), पूर्वपुढवय में करेला, उत्तरापुढवय में वराह का मांस, रेवती में जलचर का मांस अश्विनी में तीतर का मांस तथा भरणी में तिल और तंदुल खाने से कार्य की सिद्धि होती है। (५१)। अठारहवें अध्याय में सूर्य और चन्द्र के परिभ्रमण का वर्णन है। इसमें बताया गया है कि सूर्य और चन्द्र किस नक्षत्र के योग में कितना परिभ्रमण गौतम-गोयम, गग्ग, भारद्द, अंगिरस, सक्कराभ, भक्खराभ, उदगत्ताभ। वत्स-वच्छ, अग्गेय, मित्तिय, सामिलिणो, सेलतता, अडिसेण, वीयकम्ह । कुत्स-कोच्छ, मोग्गलायण, पिंगलायण, कोडीण, मंडलिणो, हारित, सोमय । कौशिक-कोसिय, कच्चायण, सालंकायण, णोलिकायण, पक्खिकायण, अग्गिच्च, लोहिय। मंडव-मंडव, अरिह, समुत, तेल, एलावच, कंडिल्ल, खारायण। वाशिष्ठ-वासिठ्ठ, उंजायण, जोरकण्ह, वग्धावच, कोडिन्न, सण्ही, पारासर । संभव है, यहाँ लोक में प्रचलित मांस-भक्षण की ष्टि से यह सूत्र कहा गया हो। वैसे जैन सूत्रों में मांस-सेवन के उल्लेख पाये जाते हैं-देखिए, जगदीशचन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० १९८२०४. श्री अमोलकऋषि ने चन्द्रप्रज्ञप्ति के अनुवाद में मांसवाचक पदार्थों का अर्थ बदल कर शाकवाचक अर्थ किया है। चन्द्रप्रज्ञप्ति में चमस की जगह वसभ, कसोइ की जगह कसारि, असित्तिया की जगह आतिसिया. बल की जगह बिल्ल, तुवर की जगह तुंबर और तल की जगह तिल पाठ दिया हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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